Book Title: Hindi Natakkar
Author(s): Jaynath
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 247
________________ हिन्दी के नाटककार सौभाग्य' (अम्बिकादत्त व्यास), 'भारत सौभाग्य' (प्रेमघन), 'भारत-हरण' (देवकीनन्दन त्रिपाठी), 'भारत-दुर्दशा' (प्रतापनारायण मिश्र), श्रादि नाटक इस युग की प्रसिद्ध रचना कही जा सकती हैं। इनमें कोई भी रचना नाटक की कोटि में नहीं आ सकती। न तो इनकी कथा-वस्तु ही शृङ्खलाबद्ध है, न पात्रों का चरित्र-चित्रण ही ठीक । रसानुभूति की भी इसमें अत्यन्त कमी है। किसी-किसी नाटक में पात्रों की भरमार है। देश-प्रेम के विचार पात्रों के मुख से कहला दिये गए हैं। इन रचनाओं के नामों से ही पता चलता है कि ये सभी भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र की नकल है । 'भारत', 'सौभाग्य देवी', 'दुर्भाग्य', 'दुःख','विनाश' आदि को पात्रों का रूप देकर नाटक का ढाँचा खड़ा करना कोई प्रशंसनीय और सफल कल्पना नहीं कही जा सकती। इन नाटकों के सभी पात्र और कथावस्तु कल्पित हैं। __समाज की जलती समस्याओं को भी इस युग के लेखकों ने अपने नाटकों के लिए चुना । प्रेम-सम्बन्धी नाटक भी पर्याप्त संख्या में लिखे गए । 'विवाहविडम्बन' ( तोताराम ), 'विधवा-विवाह' ( काशीनाथ खत्री ) तथा 'दुःखिनी बाला' ( राधाकृष्ण दास ) आदि का नाम इस क्षेत्र में लिया जा सकता है। प्रेम-सम्बन्धी नाटकों में 'रणधीर-प्रम-मोहिनी' ( श्रीनिवास दास ), 'मैं तुम्हारी ही हूँ' (सतीशचन्द्र बसु ), 'प्रणयिनी-प्रणय' और 'मयंक मंजरी' ( किशोरीलाल गोस्वामी ) आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। रणधीर-प्रेममोहिनी' हिन्दी का पहला दुःखान्त नाटक है। गतिशीलता की कमी होते हुए भी अन्य नाटकीय गुण इसमें पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं। साधारण जीवन को लेकर नाटक लिखना और उसे यगानुकूल सफल बनाना प्रशंसनीय प्रयास है। इन प्रेम-सम्बन्धी नाटकों में घटनाओं का विकास स्वाभाविक न होकर, घटनाए अकस्मात् घटती हैं। पुराने समय में यह अकस्मात् घटी घटनाएं इतनी अस्वाभाविक भी नहीं जान पड़ती थीं जितनी अाजकल । ___'वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति' और 'अंधेर नगरी' लिखकर भारतेन्दु ने हिन्दी में प्रहसन लिखने का द्वार खोला । भारतेन्दु-युग में समाज-सुधारसम्बंधी प्रहसन भी लिखे गए। एक एक के तीन तीन', 'कलयुगी जनऊ', 'बैल छै टके कौ' और 'सैकड़ों में दस दस' ( देवकी नन्दन त्रिपाठी); 'जैसा काम वैसा परिणाम' ( यालकृष्ण भट्ट); 'कलजुगी कौतुक' (प्रतापनारायण मिश्च ), 'बूढ़े मुंह मुहासे' और 'तन-मन-धन गुसाई जी के श्रर्पण' (राधाचरण गोस्वामी) तथा 'चौपट चपेट' (किशोरीलाल गोस्वामी) श्रादि का उल्लेख किया जा सकता है । इस युग के प्रहसनों में श्रनीति, दुराचार,

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