________________ रंगमंचीय नाटककार 267 श्रागा हश्र काश्मीरी और द्विजेन्द्रलाल राय से यह अत्यन्त प्रभावित हैं और उनको अपना गुरु मानते हैं / रङ्गमंच पर इनके नाटकों को बड़ी सफलता प्राप्त हुई। इनके नाटकों में साहित्यिकता भी है। इन्होंने करीब 15 नाटक लिखे-'देश का दुर्दिन', समाज का शिकार','चिरागे चीन', मेरी आशा', दज का चाँद', 'बलिदान', परिवर्तन', वीर भारत', पहली भूल', 'जीवन का नशा','दौलत की दुनिया', 'धरती माता', 'पशु-बलि', 'आजकल', 'अाज की बात' आदि / इनका नाटेक काल भी लगभग 1920 से प्रारम्भ होता है और 1640 तक समझा जा सकता है। इनके अतिरिक्त और भी अनेक नाटककार हुए जिन्होंने रङ्गमंच के लिए नाटकों की रचना की। बाबू बलदेव प्रसाद खरे ने भी पारसी-स्टेज के लिए अनेक हिन्दी-नाटकों की रचना की। किशनचन्द 'जंबा', तुलसीदत्त 'शेदा', हरिकृष्ण 'जौहर और श्रीकृष्ण 'हसरत' का नाम भी इस सम्बन्ध में भुलाया नहीं जा सकता। प्रायः इन सभी का सम्बन्ध व्यवसायी नाटक-मण्डलियों से रहा / इन्होंने अधिकतर रचना उर्दू में हो की, पर इनके नाटकों का रूपान्तर हिन्दी में भी हुआ। रचना वैसी ही, जैसी कि उस युग में नाटकमण्डलियों के लिए लिखे जाने वाले नाटकों की होती थी।