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गोविन्दवल्लभ पन्त
पण्डित गोविन्द वल्लभ पन्त हिन्दी के पुराने खेवे के प्रतिभाशाली और सफल नाटककार हैं। पन्तजी प्रसाद युग में अपने कई सफल और सुन्दर नाटक लेकर हिन्दी में आये | आपने सुन्दर कहानियाँ भी लिखीं; पर आपकी प्रतिभा नाटककार के रूप में ही अधिक विकसित हुई और चमकी भी । ऐसा नहीं लगता कि पन्तजी के नाटकों में प्रेरणा की कोई एक विशेष धारा बह रही है । 'प्रसाद' ने जिस प्रकार भारतीय संस्कृति की महानता से अनुप्राणित होकर भारतीय राष्ट्रीयता का सशक्त और उन्नत रूप अपने नाटकों में रखा, या 'प्रेमी' ने जिस प्रकार वर्तमान भारतीय राष्ट्रीय संघर्ष से प्रेरित होकर अपने नाटकों के द्वारा भारतीय एकता की मशाल जलाई और बलिदान का पथ प्रकाशित किया, पन्तजी के नाटकों में उस प्रकार की किसी विशेष प्रेरणा का आग्रह दिखाई नहीं देता । पन्तजी के नाटकों की प्रेरणा है कला का अनुरोध या नाटक-निर्माण-कामना का आग्रह |
पन्तजी ने अपने नाटकों के लिए कथानकों का चुनाव किसी एक ही क्षेत्र से नहीं किया । पुराण - इतिहास और वर्तमान जीवन सभी क्षेत्रों से उन्होंने अपने कथानक और पात्र लिये । 'वरमाला' पौराणिक कथा लेकर लिखा गया । 'राजमुकुट' और 'अन्तःपुर का छिट्ट' ऐतिहासिक नाटक है । 'अङ्गर की बेटी' वर्तमान जीवन की कहानी है। इसमें मदिरापान करने से जिन सामाजिक और मानवी अपराधों का जन्म होता है, वे भली प्रकार दिखाये गए हैं। इससे प्रकट होता है कि पन्तजी में विभिन्न जीवन कथाको नाटकीय रूप देने की पूर्ण क्षमता है ।
घटनाओं को नाटकीय रूप देने में पन्तजी अत्यन्त सफल कलाकार हैं 1 उनके नाटकों में कौतूहल, आकस्मिकता, जिज्ञासा श्रादि के लिए पर्याप्त सामग्री रहती है । वातावरण उपस्थित करने में भी वह पद हैं। पन्तजी के नाटक अभिनेता की दृष्टि से भी सफल रहते हैं । कथा में उलझन प्रायः नहीं