Book Title: Hindi Natakkar
Author(s): Jaynath
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 205
________________ २०४ हिन्दी के नाटककार उनमें वह अन्तद्वन्द्व और आत्म-संघर्ष देखने को नहीं मिलता जो वर्तमान जीवन के सामाजिक प्राणवान चरित्रों में मिल सकता है। 'कर्ण' पौराणिक होते हुए भी चरित्र की दृष्टि से अच्छा नाटक है। कर्ण की अन्तर्दशा उसके स्वगत में प्रकट है, "यदि मै सूत ही होऊँ तो? तो-तो भी क्या हुआ । आर्य और छुत कहे जाने वाले व्यक्तियों में अन्तर क्या है ? वरन ये आर्य तो पतित-दिन प्रतिदिन महापतित होते जा रहे हैं। (फिर कुछ रुककर ) परन्तु ...परन्तु फिर इतनी उद्विग्नता क्यों ? अनजाने नहीं, पर जान-बूझकर भी जो करता हूँ, उससे दुःख क्यों ?" कवच-कुण्डल दान करने से पूर्व उसके हृदय की अवस्था बड़ी डावाँडोल है "हर दृष्टि से कवच-कुण्डलों का दान अनिवार्य है (फिर कुछ रुककर) और यदि शक्ति न माँगू तो ! (फिर कुछ रुककर) स्वयं न माँगूंगा। यदि सुरपति ने वर मांगने को कहा तो माँगने में क्या हानि है ?Xxx और...और शक्ति माँगने के पश्चात् ? अर्जुन के अतिरिक्त कौन मेरा सामना कर सकता है । अर्जुन के लिए यह शक्ति यथेष्ट होगी। किन्तु, किन्तु शक्ति तो मुझसे न मांगी जायगी । यह-यह तो व्यापार होगा।" 'शशिगुप्त' में शशिगुप्त के चरित्र को भी लेखक ने प्रकट करने का प्रयत्न किया है, "जब आम्भीक ने अपने भाषण में मेरा नाम लिया, पुझे अलक्षेन्द्र का शरणागत बताया, और जब उस भरी सभा ने एकटक मेरी ओर देखा, उस समय-उस समय, गुरुदेव, जैसी ग्लानि. जैसे महान आत्मग्लानि का मैंने ग्रनभव किया, वैसे अनुभव उससे पूर्व जीवन में कभी नहीं हुआ था ।" शशिगुप्त के चरित्रों-चाणक्य और शशिगुप्त-में देश-भक्ति की भावना सर्वोपरि है। इसी से प्रेरित इनके जीवन में भावनाओं या वृत्तियों में परिवर्तन होता है। ___ चरित्र-चित्रण की दृष्टि से 'कुलीनता' में गोविन्ददास जी ने अच्छी सफलता प्राप्त की है। इसमें कुलीनता के अहं से प्राघात खाकर यदुराय के चरित्र में शानदार विकास देखा जाता है । यदुराय एक गोंड है। चण्डपीड कलचुरि राजा विजयसिंह का सेनापति (बाद में मन्त्री) है। सेनापति के स्वार्थपूर्ण श्रहं ने यदुराय का अपमान उसके प्रति राजा से भी अन्याय कराया है। वह शस्त्रप्रतियोगिता में देश का सर्वश्रेष्ठ वीर प्रमाणित होता है, फिर भी उसे पुरस्कार नहीं मिलता उलटे देश-निकाला मिलता है। वह तिलमिला उठता है। मरघट में घूमते हुए वह कहता है, "निकृष्ट, हाँ, निकृष्ट गोंड की खोपड़ी। नहींनहीं, हाँ, निकृष्ट गोंड की खोपड़ी ! पर निकृष्ट और पामर गोंड की ही वाक्यों ? कुलीन ब्राह्मण, कुली क्षत्रिय कुलीन वैश्य की ही क्यों नहीं ! (फिर

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