Book Title: Hindi Natakkar
Author(s): Jaynath
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 233
________________ २३२ हिन्दी के नाटककार हूँ। भावुक हृदय और सजल नेत्रों के अतिरिक्त मेरे पास और है ही क्या?" लक्ष्मण जब राम के द्वारा उपेक्षित होकर सरयू तट पर योग करने चले जाते हैं, तब यह अश्रमती करुणा-विह्वल, वेदना-पीड़ित कुलवधू "अनंत वर्षों के सहवास के अनन्तर क्या मैं अंतिम मिलन की अधिकारिणी भी न हो सकी ?" कहते हुए बेहोश हो जाती है। ___शर्मा जी पुरुष की अपेक्षा नारी-चरित्र अङ्कित करने में अधिक सफल हैं। कला का विकास शर्मा जी की कला में लगातार विकास होता गया है। ज्यों-ज्यों वह आगे बढ़े हैं, उनकी लेखनी में निखार और दृढ़ता आती गई है। उनके प्रायः सभी नाटकों में टैकनीक की सरलता है। उनमें उलझन नहीं और न ही 'प्रयोग' के नशे में श्राकर उन्होंने ऊटपटाँग प्रयोग किये हैं। सभी नाटकों में तीन-तीन अङ्क हैं ? इतने छोटे और सीधी सरल शैली के नाटक हिन्दी में बहुत कम हैं। 'दुविधा' और 'अपराधी' में तो संकलनत्रय का बहुत अधिक समावेश हो गया है। पहले में अधिक-से-अधिक १५ दिन और दूसरे में दो महीने के जीवन की कहानी है । 'उर्मिला' में संकलनत्रय का तनिक भी ध्यान नहीं रखा गया । रखा ही नहीं जा सकता था। राम-वन-गमन से वापिस पाने तक की कथा उसमें है । चौदह वर्ष के लम्बे जीवन की श्रश्र-भीगी कहानी 'उर्मिला' में है। स्थान की भी एकता उसमें नहीं आ सकती। अयोध्या और वन दोनों में ही 'उर्मिला' के करुण जीवन की कथा व्यथा से छटपटाती घूमती फिरती है। टैकनीक के नाम पर जीवन की विस्तारभरी कथा का दम घोटना उचित नहीं । शर्मा जी ने उस स्वाभाविकता का बड़ा ध्यान रखा है। उन्होंने टैकनीक के नशे में कथा का नाश नहीं किया और न विभिन्न स्थानों को, स्थान की एकता के नाम पर, संकुचित क्षेत्र में ही कैद किया। 'दुविधा' शर्मा जी का प्रथम नाटक है। इसमें कमियों स्पष्ट हैं। कार्यव्यापार की इसमें अत्यन्त कमी है । प्रायः सभी दृश्य श्राराम कुर्सियों में पड़ेपड़े पात्रों की बहस-मात्र हैं या प्रेमावेश में बोलते हुए सुन्दर, मधुर, कोमल शब्दों की बौछार-मात्र । पहले अंक में काफी शिथिलता है। दूसरे में घटना के नाम पर केवल केशवदेव की पत्नी मोहिनी का प्रवेश और केशव के छलकपद का भण्डा फोड़ है । वह भी नाटकीय नहीं । कार्य-व्यापार शिथिल होते हुए भी दूसरे अंक का चौथा और तीसरे का चौथा दृश्य प्रभावशाली हैं।

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