Book Title: Hindi Natakkar
Author(s): Jaynath
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 234
________________ २३३ पृथ्वीनाथ शर्मा अपराधी' में शिथिलता कम हो गई है। पात्रों में स्फूर्ति है-अभिनय में जान है । पहला दृश्य ही स्फूर्तिमय और नाटकीय है । पहले अंक का तीसरा दृश्य तो रोमांचक नाटकीयता, तीव्र कार्य-व्यापार और कमाल के कौतूहल से पूर्ण है। यही दृश्य पूरे नाटक का प्राण है । नन्दगोपाल, रेणु, लीला, नाटक के सभी प्रमुख पात्र कार्यशील और प्राणवान हैं। उनमें कर्म का उत्साह और खोज का उल्लास है । 'उर्मिला' तो घटनाओं से पूर्ण ही है-वन-गमन, रामभरत-मिलन, दशरथ-मरण, रामागमन, लक्ष्मण का गृह-त्याग। इसमें शिथिलता का नाम नहीं-पात्रों में भी स्फूर्ति है । दासी, उर्मिला, सुमित्रा, मांडवी सभी में एक गतिशीलता पाई जाती है। उर्मिला का प्रथम और अन्तिम दृश्य तो सामाजिकों पर अमित प्रभाव छोड़ते हैं। चरित्र-चित्रण, कार्य-व्यापार, टैकनीक की सरल, प्रभाव और रस की दृष्टि से 'उर्मिला' शर्मा जी का सर्वश्रेष्ठ नाटक है। टैकनीक का नवीन प्रयोग शर्मा जी ने 'अपराधी' में किया है। प्रथम अंक के प्रथम दृश्य में अशोक घर से भाग जाता है। दूसरे दृश्य में वह कहानी सुनाना आरम्भ करता है, तीसरे दृश्य में वह पकड़ा जाता है। कहानी का तीसरा दृश्य भी कहानी में जुड़ जाता है । कहानी चलती रहती है। और अशोक के विषय में अनेक दृश्य सामने आते हैं। तीसरे अङ्क के प्रथम दृश्य में फिर अशोक प्रमिला और अनिल को कहानी सुनाने लगता है । इसके बाद चार दृश्यों में अशोक-सम्बन्धी दृश्य, उसका जेल-मुक्त होना आदि हैं। अन्तिम दृश्य में पता चलता है कि उन बच्चों की अम्मा का पति वास्तविक चोर था और अशोक की कहानी सुनकर वह इतनी प्रभावित हुई कि उसने अपने पति को गिरफ्तार करा दिया। अशोक द्वारा बच्चों को सुनाई गई और अशोक की निजी कहानी की घटनाएं आपस में ऐसी जमकर बैठी हैं कि लेखक की कलम की प्रशंसा करनी पड़ती है । नाटक में यह फिल्मी टकनीक हमने केवल 'अपराधी' में पाई और अत्यन्त सफल । इस नाटक में नाटक के सभी तत्त्व-कौतूहल, रहस्य-प्रन्थि, नाटकीयता, कार्य-न्यापार-बहुत ही स्वस्थ और सफल रूप में पाए हैं। ___ चरित्र-चित्रण भी सभी नाटकों में अच्छा हुआ है । 'दुविधा' में सुधादेवी के चरित्र में श्रादि से अन्त तक भावुकता, अनिश्चयात्मकता और दुविधा है। 'अपराधी' में अशोक और प्राभा के चरित्र-चित्रण में चमक है और श्राभा के चरित्र पर सम्मान से सिर झुक जाता है। 'उर्मिला' में उर्मिला का चरित्र दिव्य है। नारीत्व की चमकती तस्वीर उसमें है । भावुकता,

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