________________
११६
हिन्दी के नाटककार तीसरे अङ्क का प्रथम श्य कमल मीर का दरबार । दोनों ही दृश्य प्रागेपीछे हैं और वातावरण की दृष्टि से बड़े भी। पर अंक परिवर्तन के कारण इनके निर्माण के लिए काफी समय मिल जाता है। __'अंगूर की बेटी' में तो कोई कठिनाई उपस्थित ही नहीं हो सकती। सभी दृश्य साधारण और सरल हैं। होटल का कमरा, मैनेजर का श्राफिस, बैठक, पार्क आदि के दृश्य इसमें हैं। अधिकतर दृश्य चार-पाँच कुसियाँ और एक मेज डालकर बनाये जा सकते हैं। ___ 'अन्त:पुर का छिद्र' अभिनय की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ नाटक कहा जा सकता है। इसका दृश्य-विधान पंतजी के सभी नाटकों से सरल हैं। पहले अंक का पहला दृश्य है-महारानी पद्मावती का सुसज्जित कक्ष, दूसराउदयन के महल का प्रांगण पहला दृश्य दूसरे पर्दे के पीछे बनाया जायगा
और वह समाप्त होते ही पर्दा गिराकर उसके आगे मागंधिनी गाते हुए प्रवेश करेगी। दूसरा दृश्य उपस्थित हो जायगा। दूसरा अंक; प्रथम दृश्यउदयन का विलास-भवन, दूसरा-पद्मावती का कक्ष, तीसरा-पद्मावती के कक्ष का बाहरी भाग । पहले कुछ परिवर्तन करके शीघ्र दूसरा बनाया जा सकता है। तीसरे में कुछ भी करना नहीं है। तीसरा धक; पहला दृश्यराज-भवन के पास का उद्यान, दूसरा राज-भवन का बाह्य देश, तीसराउदयन का विलास-भवन, चौथा-पद्मावती का कक्ष सभी दृश्य अत्यन्त सरल हैं। ___ सभी नाटकों की दृश्यावली निर्माण और अभिनय की दृष्टि से अत्यन्त सरल और नाटकोचित होते हुए भी कहीं-कहीं फिल्मी ढङ्ग के दृश्य भी पन्त जी ने रच डाले हैं। 'वरमाला' के तीसरे पक्ष के प्रथम दृश्य में तीन उपश्य दिये गए हैं । ये तीनों दृश्य स्वप्नावस्था के हैं। इनमें वैशालिनी और अवीक्षित सशरीर उपस्थित होकर वार्तालाप करते हैं। अन्त में निराश होकर वैशालिनी आत्म-हत्या करना चाहती है, अवीक्षित उसे रोकता है। अन्त में एक राक्षस श्राता है । वैशालिनी जागती है।
फिल्म में तो ये उपदृश्य दिखाए जा सकते हैं, पर नाटक में इनका दिखाया जाना असम्भव है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से तो ये बड़े उपयोगी हैं, नाटकीय या अभिनय की दृष्टि से असम्भव । ___ इसी प्रकार 'अंगूर की बेटी' के दूसरे अङ्क का सातवाँ दृश्य भी असंभव है । निर्जन वन में एक सड़क जो एक नदी के ऊपर बने पुल से होकर जाती है। पुल टूटा है। सड़क का रास्ता एक लट्ठ से रोक दिया गया है। एक