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हरिकृष्ण 'प्रेमी'
हास्य का समावेश
प्रेमी जी के नाटकों की पृष्ठभूमि युद्ध काल की है - सभी में मुस्लिमकाल के भारत की स्थिति का चित्रण है । युद्ध के समय हास्य कम ही सूझता है, पर सैनिकों के रात-दिन के युद्ध और व्यस्तता के जीवन में हास्य होता अवश्य है — और काफी मस्तियों से भरा । हर नाटक में हास्य हो ही, यह श्रावश्यक नहीं; पर उससे नाटकीय महत्त्व बढ़ श्रवश्य जाता है ।
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प्रेमी जी ने हास्य या विनोद की सृष्टि विदूषक को अस्वाभाविक रूप में स्थान न देकर, किसी पात्र का निर्माण करके की है । 'रक्षा बन्धन' में धनदास हास्य का अच्छा श्रालम्बन है । धन हो उसका सब कुछ है, इसी को प्रकाशित करने में वह खासा हास्य उत्पन्न कर देता है । राजनीति और पेट का सम्बन्ध बताते हुए वह कहता है—
" अरे बड़ा पेट न हो तो गालियाँ, बदनामियाँ, अपमान और जूतियाँ और इन सबके साथ-साथ दुनिया भर की सम्पत्ति और जमाने भर का प्रभुत्व कहाँ हज़म हो ? जो इन्हें हजम नही कर सकता, उसका बाप भी सात पीढ़ियों तक सफल राजनीतिज्ञ नहीं हो सकता ।"
इसी दृश्य में धनदास की कमर पर बाघसिंह की लातें पड़ती हैं, यह घटना भी हास्य उत्पन्न करेगी, धनदास के प्रति करुणा नहीं । 'रक्षा बन्धन' का दूसरे क का प्रथम दृश्य भी धनदास के लिए है - इसमें भी हास्योत्पादक वातावरण है । अपनी पत्नी से धनदास कहता है, "मैं क्या बेवकूफों की तरह मरूँगा ! महीना दो महीना तुम्हारे इन कोमल हाथों से सेवा न कराई, हरिरियों को शर्माने वाली इन बड़ी-बड़ी प्राँखों में प्राँसू न देखे तो मरने का मजा ही क्या आया ? यह भी कोई मरना है कि तलवार लगी और सिर धड़ से अलग ।"
तीसरे का पहला और छठा दृश्य हास्य-विनोद से पूर्ण है ।
'उद्धार' में भी जाल का चरित्र बहुत विनोदी है । वह अपने हँसोड़ स्वभाव से कमला के वैधव्यपूर्ण धुँधले जीवन में मुस्कान की किरणें बिखराता रहता है
" कमला कौन-सी बात काका जी ? जाल----
- पहले मुह मीठा करा, पीछे बताऊँगा । कमला –— ऊहूँ, पहले बात बताइये ।
जाल - ऊहूँ, पहले मुँह मीठा करा ।
कमला --- मीठा खाने से पेट में कीड़े पड़ जाते हैं ।