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जैन भक्ति : प्रवृत्तियाँ
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ही होती है। इस भाँति जैन महाकाव्य सगुण : सकल और निर्गुण : निष्कल की भक्तिके रूपमें ही रचे गये है।
हिन्दीके जैन खण्डकाव्य अधिकांशतया नेमिनाथ और राजीमतीकी कथासे सम्बद्ध हैं। यद्यपि नेमिनाथ विवाहके तोरणद्वारसे बिना विवाह किये ही वैराग्य लेकर तप करने चले गये थे, किन्तु राजीमतीने उन्हीको अपना पति माना और उनके विरहमें विदग्ध रहने लगी। अतः उनके जीवनसे सम्बन्धित खण्डकाव्योंमे प्रेम-निर्वाहको पर्याप्त अवसर मिला है। उन्हें लेकर जैनकवि प्रेमपूर्ण सात्त्विकी भावोकी अनुभूति करते रहे है । इस दृष्टिसे ये काव्य रोमांचक कहे जा सकते है, किन्तु उनमे युद्धवाली बात नही है । हिन्दीके नेमिनाथपरक खण्डकाव्योमें राजशेखरसूरिका 'नेमिनाथफागु', सोमसुन्दरसूरिका 'नेमिनाथनवरसफागु', कवि ठकुरसीकी 'नेमीसुरकी बेलि', विनोदीलालका 'नेमिनाथ विवाह', मनरंगको 'नेमिचन्द्रिका', ब्रह्मरायमल्लका 'नमीश्वररास' और अजयराज पाटणीका 'नेमिनाथचरित' प्रसिद्ध काव्य-रचनाएं है । हिन्दीमे हरिवंशपुराण भी है, जिनमें नेमीश्वर और उनके भाई वासुदेव कृष्णका समूचा जीवन वर्णित है। हरिवंशपुराणोंकी परम्परा बहुत पुरानी है। हिन्दीके हरिवंशपुराण संस्कृत-अपभ्रंशके अनुवाद-भर है। उनमे कोई मौलिकता नहीं है। किन्तु साथ ही यह भी सच है कि हिन्दीके खण्डकाव्यों-जैसी सरसता और सुन्दरता सस्कृत और अपभ्रंशमे नही है।
जैन भक्तिकी शान्तिपरकता
कवि बनारसीदासने 'शान्त' को रसराज कहा है। उनका यह कथन जैनोंके 'अहिंसा' सिद्धान्तके अनुकूल ही है। जैन भक्ति पूर्णरूपसे अहिंसक है। जनेतर भक्तिमे हिंसाकी बात कहीसे भी आरम्भ हुई हो किन्तु थी अवश्य । वैदिक याज्ञिक अपने देवताओंको प्रसन्न करनेके लिए बलि दिया करते थे। शक्ति-पूजाके साथ हिंसाकी बात और भी बढ़ी। सोमनाथके शक्तिके मन्दिरमे भाद्रपदकी अमावसकी रातमे एकसो सोलह कुंआरी सुन्दरी कन्याओंकी बलिकी बात प्रसिद्ध ही है। तान्त्रिक-युगमे अहिंसक बौद्ध भी मांस, मदिरा और सुन्दरीसे निर्वाण-प्राप्ति मान उठे थे। जैन देवियां तान्त्रिक-युगसे प्रभावित
१. 'नवमो शात रमनिको नायक', नाटकसैमयसार, बम्बई, १०।१३३, पृ० ३६१ ।