Book Title: Hindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Author(s): Premsagar Jain, Kaka Kalelkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 470
________________ ४४४ हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि अडिल्ल जैन - हिन्दी के कवियोंने अडिल्लोंका भी प्रयोग किया है । कवि बनारसीदासने 'नाटक समयसार' मे सात अडिल्ल लिखे हैं | भैया भगवतीदासने भी अडिल्ल लिखे है, किन्तु बहुत कम। उनकी रचना 'मन बत्तीसी' का एक अडिल्ल इस प्रकार है, "कहा मुंडाये मूड बसे कहा कहा नहाये गंग नदी के कहा कथा के सुने बचन के पटुका । " जो बस नाहीं तोहि पसेरी अटका ।। " मट्टका । तट्टका ॥ श्री भूधरदास के 'पार्श्व पुराण' में यत्र-तत्र अडिल भी बिखरे हुए है। उसका एक अडिल्ल है, " अष्ट गुणातम रूप कमल मुक्त हैं । थिति उतपति विनाश, धर्म संयुक्त हैं ॥ चरम देह तैं कछुक, होन परदेश हैं । लोक अग्रपुर बसें परम परमेश हैं ।। २ हरिगीतिका - लयात्मक छन्दोंमे हरिगीतिकाका प्रमुख स्थान है । इसमें सोलह और बारह मात्राओं पर विराम होता है । लयके संचरणके लिए प्रत्येक चरणमे ५वीं, १२वीं, १९वीं और २६वीं मात्राएँ लघु होती हैं । अन्तिम दो मात्राओंमें उपान्त्य लघु और अन्त्य दीर्घ होता है । कवि बनारसीदासका एक हरिगीतिका निम्नलिखित है, "जे जगत जन को कुपथ. डारहिं, वक्र शिक्षित तुरग से । जे हरहिं परम, विवेक, जीवन, काल दारुण उरग से ॥ जे पुण्यवृक्षकुठार वीखन, गुपति व्रत मुद्रा करें। ते करन सुभट प्रहार भविजन, तब सुमारग पग धरै । सोरठा - सभी जैन कवियोंने सोरठाका अधिकाधिक प्रयोग किया है। चौपाई के साथ दोहोंके स्थानपर सोरठ भौ बहुत लिखे गये है । पृथक रूपसे भी सोरठींस, क्विता "" Tis भैया भगवंतोदास, मनबत्तीसी, रहवाँ पद्य, महाविलास, पृ० २६४ । २. भूधरदास, पार्श्वपुराण, कलकत्ता, नवमोऽधिकारः, ८६वॉ पद्य, पृष्ठ' ७८ । ३. सूक्ति मुक्ताबली, ६εवॉ पद्य, बनारसी विलास, जयपुर, १६५४ ई०५ ५० ५२ ।

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