Book Title: Hindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Author(s): Premsagar Jain, Kaka Kalelkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 518
________________ १९२ हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि "नाम को भरोसो बल, चारिहूं फल को फल, ___ सुमिरिये छांडि छल, भलो कृतु है । स्वारथ साधक, परमारथ दायक नाम, राम नाम सारिखो न और दूजो हितु है।" जैन कवि श्री कुशललामने भी पंच परमेष्ठीके नामको महिमा बतलाते हुए कहा है कि - जो नित्य प्रति नवकारको जपता है, उसको सांसारिक सुख तो मिल ही जाता है, शाश्वत सिद्धि भी प्राप्त हो जाती है, "नित्य जपी ई नवकार संसार संपत्ति सुखदायक, सिद्ध मंत्र, शाश्वतो इम जपे श्री गजनायक ।" भगवतीदास 'भैया' का विश्वास है कि वीतरागी भगवान्का नाम लेनेवालेके धाम धनसे तो भर ही जाते है, वह भवसिन्धुसे भी पार हो जाता है, "वीतराग नाम सेती काम सब होहिं नीके वीतराग नाम सेती धाम धन भरिये । वीतराग नाम सेती विधन विलाय जायं, वीतराग नाम सेती भव-सिन्धु तरिये ॥" सुख चाहे इहलौकिक हो चाहे पारलौकिक, पाप नष्ट हुए बिना प्राप्त नहीं होता । भगवान्का नाम लेने मात्रसे हो पाप दूर हो जाते है । तुलसीने लिखा है, "राम नाम सों रहनि, राम नाम की कहनि, कुटिल - कलि - मल - सोक - संकट-हरनि ॥" "भैया' भगवतीदासने तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथके नामसे पापोंको कम्पायमान होते हुए दिखाया है, "मुनिसुव्रत जिन नांव, नांव त्रिभुवन जस जंपै। जंपै सुर नर जाप, जाप जपि पाप सु कंपै ॥" द्यानतरायने लिखा है कि भगवान्का नाम लेनेसे एक क्षणमें ही करोड़ों अधजाल कट जाते हैं, १. विनयपत्रिका, उत्तराद्ध, २५४वाँ पद, पृ० ५०३ । २. कुशललाभ, नवकार छन्द, अन्तिमकलश, जैनगुर्जर कविओ, पहला भाग, बम्बई, १९२६ ई०, पृ० २१६ । ३. भगवतीदास 'भैया', अहिक्षिति पार्श्वनाथ स्तुति, २२वॉ कवित्त, ब्रह्मविलास, पृ० १६२-१६३। ४. विनयपत्रिका, उत्तरार्द्ध, २४७वाँ पद, पृ० ४८५ । ५. भगवतीदास, 'मैया', चतुविंशति जिनस्तुति, २०वॉ छप्पय, ब्रह्मविलास, पृ० १७ ।

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