Book Title: Hindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Author(s): Premsagar Jain, Kaka Kalelkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 523
________________ परिशिष्ट १ हिन्दीके आदिकालमें जैन भक्तिपरक कृतियाँ पं० रामचन्द्र शुक्लने जिस युगको 'वीर गाथाकाल' कहा, उसीको महा पण्डित राहल सांकृत्यायनने 'सिद्धकाल' और डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदीने 'आदिकाल' नामसे अभिहित किया है। मुझे 'आदिकाल' प्रिय है, क्योंकि उसमें 'वीर', 'धर्म', 'भक्ति' और 'सिद्ध' आदि सभी कुछ खप सकता है। वह एक निष्पक्ष शब्द है। यह तो अभी खोजका ही विषय बना हुआ है कि इस कालमें वीर गाथाएँ अधिक लिखी गयी अथवा धार्मिक कृतियाँ । साम्प्रतिक खोजोंसे जो कुछ सिद्ध हुआ है, उसके आधारपर धार्मिक कृतियोंकी संख्या अधिक है। उनमे जैन भक्ति-सम्बन्धी रचनाएं भी है। भक्ति और धर्मका भावगत सम्बन्ध है, अतः वे कृतियाँ धार्मिक है और साहित्यिक भी । मूल प्रवृत्तियोका भावोन्मेष ही साहित्य है, फिर भले ही उसका मुख्य स्वर धर्म या अन्य किसी विषयसे सम्बन्धित हो । __ पं० रामचन्द्र शुक्लके मतसे वि० सं० १०५० (सन् ९८३ ) से संवत् १३७५ ( सन् १३१८ ) के कालको हिन्दीका आदिकाल कहना चाहिए । किन्तु इसके पूर्व ही देशभाषाका जन्म हो चुका था। देश-भाषाका अर्थ है पुरानी हिन्दी । धर्मशास्त्री नारदने लिखा है कि "संस्कृतैः प्राकृतैर्वाक्यर्यः शिष्यमनुरूपतः । देशभाषाधुपायैश्च बोधयेत् स गुरुः स्मृतः ॥" डॉ० काशीप्रसाद जायसवालका कथन है कि देशभाषा आचार्य देवसेन ( वि० सं० ९९० ) के पहले ही प्रचलित हो चुकी थी। आचार्य देवसेनने अपने 'श्रावकाचार' में जिन दोहोंका उपयोग किया है, उनकी रचना देशभाषामे हई है। इस श्रावकाचारकी एक हस्तलिखित प्रति कारंजाके सेनगण मन्दिरके पुस्तक भण्डारमें प्रस्तुत है। इसमें प्रयुक्त शब्दरूप, विभक्ति और धातुरूप प्रायः सभी हिन्दीके हैं। कहीं-कहीं छन्द सिद्धिके लिए प्राकृत रूप रह गये है। हिन्दी काव्योंमें उनका प्रयोग आगे चलकर भी होता रहा । श्रावकाचारमें जिनेन्द्र और पंचगुरु-भक्तिके अनेक उद्धरण है । एक स्थानपर लिखा है, १. वीर मित्रोदयसे उधृत । २. डॉ. काशीप्रसाद जायसवालका लेख 'पुरानी हिन्दीका जन्मकाल', नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भाग ८, पृ० २२० ।

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