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तुलनात्मक विवेचन १. निर्गुणोपासना और जैन-भक्ति
ब्रह्म ___आचार्य योगीन्दुने शुद्ध आत्माको ब्रह्म कहा है। आत्मा और सिद्धका स्वरूप एक ही है, अतः उन्होने सिद्ध और ब्रह्ममें अभेद स्वीकार किया है। जैन हिन्दी कवि भट्टारक शुभचन्द्र', बनारसीदास और भगवतीदास 'भैया'" ने भी सिद्ध १. मूढ वियक्खणु बंमु परु अप्पा ति-विहु हवेइ ।
परमात्मप्रकाश, १११३, पृ० २२ । २. जेहउ णिम्मलु णाणमउ सिद्धिहि णिवसइ देउ । तेहउ णिवसइ बंभु परु देहह मं करि भेउ ।
वही, २२६, पृ०३३। ३. चिडूपचिता चेतन रे साक्षी परम ब्रह्म ।
परमात्मा परमगुरु तिहां नवि दीसियम्म । शांत दांत विज्ञान गुण रे सिद्ध सरूप समान। ज्ञानमात्र व्यापी विपुल देहमात्र असमान ॥७॥
तत्त्वसारदूहा, हस्तलिखित प्रति, मन्दिर ठोलियान, जयपुर, पृ० ५। ४. परमपुरुष परमेश्वर परम ज्योति परब्रह्म पूरन परम परधान है।
X सरव दरसी सरवज्ञ सिद्ध स्वामी शिव धनी नाथ ईश जगदीश भगवान है ॥
नाटकसमयसार, सस्ती ग्रन्थमाला, दरियागंज, दिल्ली, ३६वॉ पद्य, पृ० ८ । ५. जेई गुण सिद्ध माहिं तेई गुण ब्रह्म पाहिं सिद्ध ब्रह्म फेर नाहिं निश्चय निरधार के। सिद्ध के समान है विराजमान चिदानंद ताही को निहार निज रूप मान लीजिये ॥ ब्रह्मविलास, सिद्ध चतुर्दशी, पद्य २-३, पृ० १४१ ।