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हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि
आदित्यत्रतरास आदि
पं० भगवनोदासको अवशिष्ट कृतियाँ साधारण है, किन्तु उनमे कहीं-कही भावपरकता भी है । वे रचनाएं इस प्रकार हैं- 'आदित्यव्रत रास' (२० पद्य), ‘पखवाडाराम' (२२), ‘दशलक्षणरास' (३४), 'खिचडीरास' (४०), 'साधुसमाधिरास' (३०), 'रोहिणी व्रतरास' (४२), 'द्वावग अनुप्रेक्षा' ( १२ ), ' सुगन्धदशमीकथा' (५१), 'आदित्यवारकथा' (४६), 'अनथमीकथा' (२६), 'सज्ञानीढमाल', 'आदिनाथ स्तवन', 'शान्तिनाथ स्तवन' ।
५०. पाण्डे रूपचन्द (वि० सं० १६८० - १६९४ )
पं० नाथूराम प्रेमीने, 'अर्थ- कथानक' के संशोधित संस्करणमे रूपचन्द नामके चार व्यक्तियों का उल्लेख किया है। उनमें प्रधान वे हैं, जिनके साथ बैठकर कवि बनारसीदास अध्यात्मचर्चा किया करते थे । दूसरे वे है, जिनसे 'गोम्मटसार जीवकाण्ड' पढकर बनारसीदासका मिथ्यात्व दूर हुआ था। तीसरे वे हैं, जिन्होंने संस्कृत में 'समवशरण पाठ' की रचना की, और चौथे वे है, जिन्होंने 'नाटक समयसार' की भाषा- टीका लिखी । इनमे दूसरे रूपचन्द ही पाण्डे रूपचन्द है । कवि बनारसीदासने उन्हे 'गुरु' अथवा 'पाण्डे' कहकर अभिहित किया है। पं० प्रेमीने पाण्डे रूपचन्द और 'समवशरण पाठ' के रचयिता पं० रूपचन्दको भिन्न माना है। किन्तु सत्य यह है कि दोनों एक थे। दोनों संस्कृतके विद्वान् थे, दोनोंने बनारसमे शिक्षा पायी और दोनोंका समय भी एक था ।
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'समवशरण पाठ' को 'केवल ज्ञानकल्याणाच' भी कहते है । इसकी रचना वि० सं० १६९२ मे हुई थी। इसकी प्रशस्तिसे स्पष्ट है कि पाण्डे रूपचन्दका जन्म कुरु देशके सलेमपुर नामके स्थानपर हुआ था । उनके पितामहका नाम मामट और पिताका नाम भगवानदास था । भगवानदासकी दो पत्नियां थीं । पहली से ब्रह्मदास और दूसरीसे हरिराज, भूपति, अभयराज, कोर्त्तिचन्द और रूपचन्दका जन्म हुआ । रूपचन्दका वंश अग्रवाल और गोत्र गर्ग था । उन्हें
१. पं० नाथूराम प्रेमी, अर्थकथानक, पृ० ८६-६८ ॥
२. वही, पृ० ६३ ।
३. समवशरण पाठ, अन्त भाग, ३४वाँ श्लोक, प्रशस्ति संग्रह, प्रथम भाग, दिल्ली, १००वीं प्रशस्ति, पृ० १६१
४. वही, अन् भाग, पद्म १-३, १० १५८, पद्म ४-५, पृ० १५६ ।