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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि जाता है।'' इसी शताब्दीके प्रसिद्ध कवि ब्रह्म जिनदासने, भगवान् ऋषभदेवसे न मोक्ष मांगा और न इहलौकिक वैभव । उन्होने कहा, "हे प्रभु ! हमे जन्म-जन्ममे आपके चरणोंकी सेवाका अवसर मिले।" अठारहवी शताब्दीके कवि भूधरदासने 'भूधरविलास' के एक पदमे लिखा है, "हे भगवन् ! मैं याचक हूँ और आप दानी हो। मुझे और कुछ नही चाहिए, केवल सेवाका वरदान देनेकी कृपा करें।" 'जैनशतक'की एक 'भगवत-प्रार्थना मे भी उन्होने यह ही कहा है, "हे सर्वज्ञ देव ! सदैव तेरो सेवाका अवसर प्राप्त होता रहे, ऐसा मेरा निवेदन है।"
भक्त यह कभी नही चाहता कि वह अकेला ही अपने आराध्यकी सेवा करे, अपितु उसे तो यह देखकर परमानन्द मिलता है कि विश्वके बड़े-बड़े वैभवशाली जीव भी उसके आराध्यकी सेवा करते हैं। सत्तरहवी शताब्दीके कवि कुशललाभने लिखा है, "हे भगवन् ! तुम्हारा यश इस पृथ्वीपर और उस समुद्रमें, जहाँ असंख्य दोप देदीप्यमान है, तथा उस व्योममे, जहाँ अखण्डित सुर चलतेफिरते है, छाया हुआ है, असुर, इन्द्र, नर, अमर विविध व्यन्तर और विद्याधर तुम्हारे पैरोको सेवा करते है, और निरन्तर जाप लगाते है । हे पार्श्वजिनेन्द्र ! तुम समूचे जगत्के नाथ हो, और सेवकोकी मनोकामनाओको चिन्तामणिके समान पूरा करते हो। तुम सम्पत्ति भी देते हो और वीतरागी पथपर भी बढाते हो।" पाण्डे रूपचन्दके पंच मंगलका 'जन्मकल्याणक' तो भगवानकी सेवाका ही एक
१. मंगल कमला कंदुए, सुख सागर पूनिम चंदुए । जग गुरु अजिय जिणंदुए, संतीसुर नयणाणदुए । वे जिणवर पणमेविए, वे गुण गाइ सुसंसेविए। पुन्य भंडार भरेसुए, मानव भव सफल करेसुए। मेरुनन्दन उपाध्याय, अजितशान्तिस्तवनम् , इसी ग्रन्थका दूसरा अध्याय । २. तेह गुण मे जाणी या ए, सदगुरु तणो पसावतो।
भवि भवि स्वामी सेवसुं ए, लागु सह गुरु पाय तो ॥ ब्रह्म जिनदास, आदिपुराण, इसी ग्रन्थका दूसरा अध्याय । ३. भूधरको सेवा वर दीजे।
मैं जाचक तुम दानी। मै तो थाकी आज महिमा जानी ॥
भूधरविलास, कलकत्ता, ४३वाँ पद, पृ० २४ । ४. आगम अभ्यास होहु सेवा सर्वज्ञ तेरो, संगति सदैव मिलै साधरमीजन की।
जैनशतक, कलकत्ता, ६१वॉ पद, पृ० ३० । ५. इसी ग्रन्थका दूसरा अध्याय, कुशललाम।