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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
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हीरकलशका रचनाकाल वि० सं० १६२४ से १६७७ तक माना जाता है। होरकलशकी सात रचनाएँ प्राप्त है : 'सम्यक्त्वकौमुदी', 'सिंहासन बत्तीसी', 'कुमतिविध्वंस चौपाई', 'आराधना चौपई', 'मुनिपति चरित्र चौपई', 'सोलह स्वप्नसज्झाय', 'अठारह नातरां सम्बन्धी सझाय।' सम्यक्त्वकौमुदीरास ___इसकी रचना वि० सं० १६२४ माह सुदी १५ बुधवार पुष्यनक्षत्रमें हुई थी। कविने रचनास्थलका उल्लेख करते हुए लिखा है कि मैने इस रासकी रचना 'सवालष' नामकी नगरीमे की, जहांके धार्मिक-स्नेहने मुझे बांध लिया था।' इसकी सबसे प्राचीन प्रति वि० सं० १६५२ भाद्र बदी ४ भौमवारकी लिखी हुई मौजूद है, जिसे वनासुत परीष वीरदासने अपने पढ़नेके लिए लिखा था। इस काव्यमे १०५० पद्य है और सभी चौपाइयोमे निबद्ध है। इस रासमें अनेक भक्तोंके चरित्रोका सरस वर्णन है। भाषामे लय है और भावोंमे भक्तिकी सरसता। सिंहासन बत्तीसी
इस काव्यकी रचना वि० सं० १६३६ आसोज बदी २ को, सवालष देशके अन्तर्गत मेडता नामके नगरमे हुई थी। इसकी एक प्रति मेवाड़के सरस्वती भण्डारमे वि० सं० १६४६ कात्तिक सुदी १२ रविवारकी लिखी हुई मौजूद है। इस प्रतिमे श्लोक-संख्या ३५०० है। सभी पद्य चौपाई और दोहोंमे हैं। वैसे तो इस काव्यमे विक्रमादित्य भोजका चरित्र वणित है, किन्तु वास्तवमे दानकी महिमा बताना ही कविका मुख्य लक्ष्य था। दानकी महिमाका उल्लेख जैनशास्त्रोके अनुसार ही किया गया है। कुमतिविध्वंस चौपई
इस काव्यके निर्माण-कालका उल्लेख करते हुए कविने लिखा है, 'इसकी
१. संवत सोलहसई चउवीस, माही पूनम बुध सरोस पुष्य नक्षत्रई लेह,
देश सवालष नयरी जेह, धर्म तणउ जिला वाध्युनेह, तिहां कोई च उपई जेह।
जैनगुर्जरकविओ, भाग १, पृष्ठ २३४-२३५ । २. राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, भाग १, डॉ. मोतीलाल
मेनारिया सम्पादित, हिन्दी विद्यापीठ, उदयपुर, १६४२ ई०, पृष्ठ १५२-१५३ ।