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हरिवंशपुराण में लोक का जो विस्तृत वर्णन है, वह अवश्य ही उल्लेखनीय है; क्योंकि अन्य कथा ग्रन्थों ह || में लोक आदि का वर्णन संक्षेप में ही होता है। धर्म और अध्यात्म के वर्णन में भगवान नेमिनाथ की दिव्यध्वनि
को निमित्त बनाकर ग्रन्थकार ने सात तत्त्वों का निरूपण बहुत विस्तार से किया है, जिसका मूल आधार आचार्य उमास्वामी का तत्त्वार्थसूत्र (मोक्षशास्त्र) और पूज्यपादस्वामी की सर्वार्थसिद्धि है।
मात्र कथावस्तु का ज्ञान कराना पुराणकारों का उद्देश्य नहीं होता; कथानक के माध्यम से ग्रन्थकार पाठकों को सदाचार और नैतिकता के साथ-साथ निश्चय एवं व्यवहार मोक्षमार्ग का संदेश भी देना चाहते हैं।
मूलग्रन्थ में तीन लोक का स्वरूप, तीर्थंकर अदिनाथ से लेकर भगवान महावीरस्वामी का सामान्य जीवन चरित्र तथा नेमिकुमार के सम्पूर्ण जीवन का विस्तृत विवरण, पंचकल्याणकों का स्वरूप, समवशरण एवं धर्मोपदेश आदि का वर्णन बृहदाकार ६६ सर्गों में किया गया है।
आज अर्थप्रधान युग के व्यस्ततम जीवन में अध्ययन की भावना होते हुए भी किसी को इतना समय नहीं मिल पाता है कि वह इतने बड़े ग्रन्थ के अध्ययन का लाभ ले सके; एतदर्थ बहुत समय से इस हरिवंश पुराण के कथानक के आधार पर संक्षिप्त, सरल और आध्यात्मिक संस्करण लिखने की भावना मन में संजोये था; परन्तु प्रत्येक कार्य का अपना ‘स्वकाल' होता है। जब उसकी पर्यायगत योग्यता होती है, तभी वह कार्य होता है। अन्य कारण तो निमित्तमात्र हैं, बस इसी विचार से अबतक समता रखे रहा। यदि यह काम निर्विघ्न समाप्त हो सका तो मुझे प्रसन्नता होगी।
दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ के युग में महाराजा आर्य और महारानी मनोरमा नामक विद्याधर राजा हुये । इन्हीं महाराजा आर्य और मनोरमा के 'हरि' नामक पुत्र हुआ। राजकुमार 'हरि' ही इस हरिवंश की | उत्पत्ति का कारण बना। यह 'हरि' हरिवंश का प्रथम राजा था। हरिवंश के राजाओं की परंपरा में हरि के पुत्र हिमगिरि, हिमगिरि के पुत्र वसुगिरि और वसुगिरि के पुत्र गिरि आदि अनेक राजा-महाराजा हुये।
इसी हरिवंश में परम्परागत मगधदेश के स्वामी राजा सुमित्र हुये। उनकी पटरानी पद्मावती थीं, जो