Book Title: Harivanshkatha
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 11
________________ . 4 जैन पुराणों में छहद्रव्यों के रूप में प्रतिपादित विश्वव्यवस्था अनादि-अनंत एवं स्व-संचालित है। इस विश्व को किसी ने बनाया नहीं है और यह कभी नष्ट भी नहीं होगा। मात्र इन द्रव्यों की अवस्थायें बदलती हैं, जिसे जिनागम में उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य कहा गया है। द्रव्य जाति की अपेक्षा छह हैं और संख्या अपेक्षा देखें तो जीवद्रव्य अनन्त हैं, पुद्गलद्रव्य अनन्तानन्त हैं, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य एवं आकाशद्रव्य एक-एक हैं | और कालद्रव्य असंख्यात हैं। इनमें जीवद्रव्य चेतन और शेष पाँच द्रव्य अचेतन हैं। पुद्गलद्रव्य मूर्तिक है और शेष पाँच द्रव्य अमूर्तिक हैं। कालद्रव्य एकप्रदेशी है, शेष पाँच द्रव्य बहुप्रदेशी हैं, इन पाँचों को बहुप्रदेशी होने से अस्तिकाय भी कहा जाता है। इनके कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण के रूप में स्वतंत्र षट्कारक होते हैं, जिनके द्वारा इनका स्वतंत्र परिणमन होता है। परिणमन को ही पर्याय, हालत, दशा या अवस्था कहते हैं। इसप्रकार वस्तुस्वरूप के प्रतिपादन के साथ-साथ हरि वंश की एक शाखा यादवकुल और उसमें उत्पन्न हुए २२ वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ और ९वें नारायण श्रीकृष्ण । इन दो शलाका पुरुषों का चरित्र विशेषरूप से वर्णित हुआ है। ये दोनों चचेरे भाई थे। इनमें नेमिनाथ तो अपने विवाह के अवसर पर वैराग्य का निमित्त पाकर बिन ब्याहे ही सन्यास लेकर तपश्चरण हेतु गिरनार की गुफाओं में चले गये और श्रीकृष्ण ने कौरवपाण्डव युद्ध में बल-कौशल दिखलाया। एक ने निवृत्ति का मार्ग अपनाकर आध्यात्मिक उत्कर्ष का आदर्श उपस्थित किया और दूसरे ने प्रवृत्तिमार्ग के द्वारा भौतिक लीलाओं द्वारा जनमंगल के कार्य किये। ___मूलत: हरिवंशपुराण की विषयवस्तु में मूल कथानक के साथ ऐसे बहुत से आध्यात्मिक प्रसंग सम्मिलित हैं, जिनमें आत्मकल्याण एवं जनहित की भरपूर भावनायें निहित हैं। कथावस्तु के बीच-बीच में भी ऐसे अनेक तात्त्विक और नैतिक संदेश मिलते हैं, जिनसे पाठकों का जीवन ही बदल सकता है, मानव जीवन सफल एवं सार्थक हो सकता है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि जिनमत के कथन करने की पद्धति (शैली) को अनुयोग कहते हैं। सम्पूर्ण जिनवाणी प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, करणानुयोग एवं द्रव्यानुयोग - इन चार अनुयोगों में विभक्त है। जिनमत का उपदेश इन्हीं चार अनुयोगों के द्वारा दिया गया है। हरिवंश पुराण प्रथमानुयोग का ग्रन्थ है। बम 444

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