Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 5
________________ को नाम ॥ १४ ॥ पण में कीधी विविध परें, श्रीजिन पास पुकार ॥ अंगथकी अलगा रह्या, बोलीस अक्षर सार ॥१५॥ धर्म विशेषे जे जला, दान शीयल तप नाव ॥ पण सहुको दाखे सही, सबलो शील प्रत्नाव ॥१६॥ शील सत्त केडे सहु, दान मान तप धर्म ॥ हवे हुँ तेह वखाणशुं, में जाण्यो ए मर्म ॥१७॥राजा हरिचंद साहसी, सती सु तारा नारि ॥शील सत्त तेहनां चरित्र, सांज लजो नर नारि ॥ १७ ॥ गांउ गरथ लेखा पखें, प्रगटी हीरा खाण ॥ लाखजली कुण मोलवे, एहवो अवसर जाण ॥ १५ ॥ सुणतां अमी य समान गुण, रंजे चतुर सुजाण ॥ नीजे पण नेदे नहीं, पाणीमांहि पाषाण ॥ २० ॥ श्री जगवंतजी पूज्यजी, कहो वधे जिम मुज ॥ मूर ख नर जाणे नही, हाहा करे अबुऊ ॥१॥ मन संदेह म राखजो. फरि पूरजो वात॥कह्या विना कम जाणीये, अंतर कथा अखात ॥ २२ ॥ आलस निझा परिहरो, कच पच म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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