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ज्ञान विज्ञान भाग-१ प्रश्न - आयुर्वेदिक शास्त्र का रात्रि भोजन के बारे में क्या कहना है ? उत्तर - आयुर्वेदिक शास्त्र भी रात्रि भोजन की सलाह नहीं देते, बल्कि आयुर्वेदिक शास्त्रों के अनुसार
रात्रि भोजन से अधिक हानियां हैं। जैसे- रात्रि में भोजन करते समय१. जूं खा लेने से जलोदर रोग हो जाता है। २. मकड़ी खा जाने से कुष्ट रोग हो जाता है।
मक्खी खा जाने से वमन (उल्टी) हो जाती है। कीड़ा खा जाने से पित्त निकल आता है। बाल खाने से स्वर भंग हो जाता है।
चींटी खा जाने से बुद्धि मंद हो जाती है। ७. सर्प और छिपकली के विष से प्राण भी चले जाते हैं। इस प्रकार रात्रि भोजन धार्मिकता, स्वास्थ्य और आचरण आदि सभी अपेक्षाओं से हानिकारक है।
पाठ सार सात व्यसन को जो तजे, होवे श्रद्धावान । अष्टमूल गुण पालता, देता दान महान || रत्नत्रय की साधना, पीवे पानी छान । रात्रि भोजन न करे, तारण पंथी जान ||
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महिमामय मंत्र-ॐनमः सिद्धं महामंत्र है यह, जपाकर जपाकर, ॐ नमः सिद्धं ॐ नमः सिद्ध । रहे स्मरण में मंत्र यह निरंतर, ॐ नमः सिद्धं ॐ नमः सिद्धं ॥ गुरुदेव तारण को जहर जब पिलाया । अमृत हुआ विष, कर कुछ न पाया ॥ मंत्र की अगम है महिमा ध्याओ शाँत होकर, ॐ नमः सिद्धं ॐ नमः सिद्धं गुरुदेव को जब नदी में डुबाया । बने तीन टापू, देव यशोगान गाया ॥ अलौकिक क्षमा के सागर बोले थे गुरुवर, ॐ नमः सिद्धं ॐ नमः सिद्धं ..... सिद्ध प्रभु जैसे सदाकाल शुद्ध हैं। वैसे ही मेरा आतम, सदा शुद्ध बुद्ध है ॥ स्वानुभूति करते हुए बोलो सभी नर, ॐ नमः सिद्धं ॐ नमः सिद्ध कहने लगे एक दिन विरउ ब्रह्मचारी | कौन सा मंत्र है कल्याणकारी ॥ तो बोले थे ज्ञानी तारण तरण गुरुवर, ॐ नमः सिद्धं ॐ नमः सिद्धं .....
ॐ नमः सिद्ध मंत्र आत्मा के सिद्ध स्वरूप का अनुभव कराने वाला विशिष्ट मंत्र है। एक समय की आत्मानुभूति
संसार के बंधनों से छूटने का उपाय है। यह अद्भुत कार्य ॐ नमः सिद्ध मंत्र के आराधन से होता है।