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छहढाला परिचय
८४ गुणस्थानवर्ती देशव्रती श्रावक के बारह व्रतों का चित्रण भी प्रामाणिकता के साथ किया गया है।
__ देशव्रती श्रावक जब स्वयं विशेष पुरुषार्थ करके मुनिव्रत अंगीकार करता है, तब वह कैसी भावना भाता है-इसका सर्वांगीण चित्रण बारह भावनाओं के रूप में पांचवी ढाल में अत्युत्तम रीति से किया गया है।
समाज में अभी भी इन अनित्य, अशरण आदि भावनाओं का सतत् चितवन किया जाता है, पाँचवीं ढाल के प्रारम्भ में पंडित दौलतराम जी कहते हैं
इन चिंतन सम सुख जागे, जिमि ज्वलन पवन के लागै।
जिस प्रकार वायु के स्पर्श से अग्नि और अधिक प्रज्ज्वलित हो जाती है, उसी प्रकार भावनाओं के चिंतवन से समता रूपी सुख और अधिक वृद्धिंगत हो जाता है अर्थात् बारह भावनाओं का चिंतवन न तो रो-रोकर और न ही हँस-हँसकर; बल्कि वीतराग भाव से करना चाहिये, जिससे समता रूपी सुख उत्पन्न हो।
छटवीं ढाल में मुनि से लेकर भगवान बनने तक की सारी विधि सविस्तार बताई गई है। यहाँ पंडित जी ने छटवें गुणस्थानवर्ती मुनि के २८ मूलगुणों का वर्णन करने के पश्चात् स्वरूपाचरण चारित्र का वर्णन किया है, जिसमें आत्मानुभव का चित्रण बड़ी ही मग्नता के साथ किया गया है। ऐसा लगता है - मानो पंडितजी स्वयं मुनिराज के हृदय में बैठे हों और उनके अंतरंग भावों का अवलोकन कर रहे हों।
छहढाला - आध्यात्मिक जैन साहित्य का वह जगमगाता रत्न है, जिसे जौहरियों ने एकमत से 'अमूल्य' माना है। मनीषियों के कथन प्रस्तुत हैं -
सागर को गागर में भर दिया - स्व. गणेश प्रसाद जी वर्णी अनेक आगमों का मंथन कर 'छहढाला' का निर्माण हुआ है -पं. दरबारीलाल कोठिया भाव,भाषा और अनुभूति की दृष्टि से यह रचना बेजोड़ है - श्री नेमीचंद शास्त्री, आरा दौलतराम जी प्रबुद्ध, आध्यात्मिक,प्रकृति के अन्तस्थल के अंतर्दृष्टा कवि हैं-पं.सुमेरचन्द्र दिवाकर कवि दौलतराम के कारण माँ भारती का मस्तक उन्नत हुआ है - हिन्दी-जैन - साहित्य परिशीलन
इस प्रकार हम दौलतराम जी को सरल भाषा में गंभीर आध्यात्मिक रहस्यों को स्पष्ट करने वाले आध्यात्मिक कवि पाते हैं।
भाषा व शैली- 'छहढाला' ब्रज मिश्रित खड़ी बोली है, जो अलीगढ़ के आस-पास बोली जाती है। भाषा सरल, स्वाभाविक और मुहावरेदार है और सीधी हृदय को छूती है । भाषा-शैली समकालीन कवियों से मिलती-जुलती है, फिर भी प्रसाद गुण उसमें भरपूर है। दुरूह तात्विक विषय को इतने रोचक और सरल ढंग से लिखना इनकी लेखनी की विशेषता है।
रस अलंकार - यह ग्रंथ वैराग्य का पोषक व शान्त-रस प्रधान है। वैसे अन्य रसों के प्रसंग वश कुछ छींटे दिखाई देते हैं, किंतु मूलतः शान्त रस ही लहराता है। और अलंकारों में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक आदि बिना प्रयास के उनकी कविता में अलंकृत हो गये हैं।
छन्द - 'छहढाला' में मुख्य छह छन्द हैं - चौपाई, पद्धड़ी, नरेन्द्र (जोगीरासा), रोला, छन्दचाल और हरिगीता छन्द । इनकी पदावली में अनेक गेय-छन्द हैं। मालूम होता है कि कवि संगीत के अच्छे जानकार और पिंगल-शास्त्र के भी पारंगत विद्वान थे। इस प्रकार पं. श्री दौलतराम जी एवं उनके द्वारा लिखित छहढाला ग्रंथ का समाज में अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है।