Book Title: Gyanodaya
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

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Page 202
________________ १८७ धर्म का स्वरूप प्रश्न १ - सत्य असत्य चुनिये (अ) यह संसार चेतन अचेतन द्रव्य के संयोग से बना है। (ब) इस जगत में शुभ-अशुभ भावों की परख करना ही सत् धर्म है। (स) जितनी शुभ क्रियाएँ हैं, वे सभी मोक्ष की प्राप्ति में कारण हैं। (द) जो भव्य जन शुद्धात्मा के अनुभवी हैं, वे सभी अंतरात्मा हैं। (इ) सत्य तो यह है कि धर्म निर्विकल्पता को कहते हैं। प्रश्न २ - अति लघु एवं लघु उत्तरीय प्रश्न - (क) आत्मा के कितने प्रकार हैं? नाम लिखिये? उत्तर - आत्मा के तीन प्रकार कहे हैं - बहिरात्मा, अंतरात्मा, परमात्मा। (ख) पर्याय किसे कहते हैं? पर्याय के कितने भेद हैं ? उत्तर - गुणों के परिणमन को पर्याय कहते हैं। (सत्य) (असत्य) (असत्य) (सत्य) (सत्य) पर्याय के भेद व्यंजन पर्याय स्वभाव व्यंजन पर्याय विभाव व्यंजन पर्याय स्वभाव अर्थ पर्यार (ग) निश्चय अहिंसा किसे कहते हैं ? उत्तर - आत्मा में राग-द्वेष आदि विकारी भावों की उत्पत्ति न होना निश्चय से अहिंसा है। (घ) जीव किस प्रकार कर्मों का बंध करता है? उत्तर - अपने आत्म स्वभाव को भूलकर जीव शुभ-अशुभ क्रियाओं में राग-द्वेष आदि विभाव परिणाम करके नित्य नये कर्मों का बंध करता है। (ङ) हमारी कथनी और करनी कैसी होना चाहिये ? उत्तर - हमारी कथनी और करनी एक जैसी होना चाहिये तब ही मोक्ष का मार्ग मिलता है। प्रश्न ३- दीर्घ उत्तरीय प्रश्न - (क) 'हर द्रव्य अपने स्वचतुष्टय में सदा ही बस रहा' पंक्ति में स्वचतुष्टय क्या है ? स्पष्ट करें। उत्तर- द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव को चतुष्टय कहते हैं। प्रत्येक द्रव्य-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल सदा अपने स्वचतुष्टय में रहते हैं। प्रत्येक द्रव्य की सत्ता स्वचतुष्टय अर्थात् स्व द्रव्य, स्व क्षेत्र, स्व काल, स्व भाव तक ही होती है। इसे द्रव्य का स्वचतुष्टय कहते हैं।

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