Book Title: Gyanodaya
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

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Page 178
________________ श्री ममलपाहुड़ जी फूलना - ११ १६३ ४ - चेतक हियरा फूलना (फूलना ११) (विषय : लक्षण परिणाम, अर्थ पय) उवंकार उन उन पउ, सुइ नंद अनंदे । विन्यान विंद रस रमनु है, जिन जिनय जिनंदे ॥ जिन जिनियौ कम्मु अनंत है, जिन रमन सनदे । सहचेयननंद सनंद, कमल जिन सहज सनदे ॥ १ ॥ सो न्यानी तू चाहिलै, हो चेतक हियरा । विन्यान विंद रस रमनु, षिपक जिन वेदक हियरा ॥ षट् रमन कमल रस रमनु है, हो चेतक हियरा । तं अमिय रमनु विष गलनु, सुयं जिन वेदक हियरा ॥ भय षिपनिक भवु स उत्तु है, हो चेतक हियरा । लषिमेव रमन परमत्थु, जिनय जिन वेदक हियरा ॥ वैदिप्ति हियार रस रमन पउ, हो चेतक हियरा । सिह समय सिद्धि संपत्तु, ममल रस वेदक हियरा ॥ २ ॥ ॥ आचरी॥ भावार्थ :- (जिन) हे अंतरात्मन् ! (उर्वकार) ओंकार परमात्म सत्ता स्वरूप (पउ) निज पद (उर्वन) अनुभूति में (उर्वन) प्रगट हुआ है (सुइ) यह (नंद अनंदे) नंद-आनंद मयी (है) है (विन्यान) भेद विज्ञान पूर्वक (विंद रस) स्वानुभूति के रस में (रमनु) रमण करो (जिनय जिनंदे) जिनेन्द्र पद को जीतो अर्थात् प्रगट करो (जिन) हे अंतरात्मन् ! (सनंदु) आनंद (चेयननंद) चिदानंद (सहज सनंदे) सहजानंदमयी (सुइ) अपना (कमल जिन) ज्ञायक जिन स्वभाव है (सनंदे) आनंदमयी (जिन रमन) वीतराग भाव में रमण करने से (कम्मु अनंतु) अनंत कर्मों पर (जिनियो) विजय प्राप्त होती (है) है। (सो न्यानी) हे ज्ञानी ! (तू) तुम (चेतक हियरा) चैतन्य हीरा को (चाहिलै हो) प्राप्त करने की भावना भाओ (विन्यान) भेदज्ञान पूर्वक (विंद रस) निर्विकल्प रस में (रमनु) रमण करो (जिन) वीतराग स्वरूप (वेदक हियरा) ज्ञायक हीरा (विपक) कर्मों को क्षय करने वाला है (षट् कमल) षट् कमल की साधना से (रस रमनु है) निज रस में रमण होता है (हो चेतक हियरा) तुम चैतन्य हीरा हो (रमन) अपने में लीन रहो (सुयं जिन) स्वयं जिन स्वरूप (वेदक हियरा) ज्ञायक हीरा हो (तं अमिय रमनु) इसी अमृत स्वभाव में रमण करो, इससे (विष गलनु) पर्यायी विष गल जायेगा। (भवु) हे भव्य ! (हो चेतक हियरा) तुम चैतन्य हीरा हो (स) स्व स्वभाव (भय षिपनिक) भयों को क्षय करने वाला (उत्तु है) कहा गया है (वेदक हियरा) ज्ञायक भाव को (जिनय) जीतना (जिन) वीतराग स्वभाव को (लषिमेव) लखना (रमन) रमण करना, यही (परमत्थु) परमार्थ [मोक्षमार्ग] है [तुम] (वैदिप्ति) परम दैदीप्यमान (रस) निजरस से परिपूर्ण (पउ) पद के धारी (हो चेतक हियरा) चैतन्य हीरा हो, इसमें (रमन) रमण करना (हिययार) हितकारी है (वेदक हियरा) ज्ञायक हीरा के (ममल रस) ममल रस अर्थात् स्वभाव लीनता से (सिह समय) अल्पकाल में ही (सिद्धि संपत्तु) सिद्धि की संपत्ति प्राप्त होगी।

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