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ध्यान में (नंतानंत) अनन्त चतुष्टयमयी (तं सुद्ध न्यान) शुद्ध ज्ञान स्वभाव का (दर्सिय) दर्शन करते हैं [जिससे उनके (तं राय दोस) राग द्वेष आदि (मिथ्य भाव सल्य भय निकंदनो) मिथ्याभाव शल्य और भय दूर हो जाते हैं [इसलिये] (परम लष्य) उत्कृष्ट लक्ष्य को (लष्यनो) प्राप्त करने हेतु (तं परम भाव) परम पारिणामिक भाव को (परम उत्त) श्रेष्ठ कहा गया है।
अनंत रूव पर अभाव रूवतीत विक्तयं । सरूव रूव विक्त रूव तिक्त भय निरूपियं ॥ अन्यान भाव मन सुभाव मिच्छ भय निकंदनो।
तं न्यान रूव ममल दिस्टि समल भाव विहंडनो ॥ ५ ॥ भावार्थ:-(अनंत रुव) अनन्त चतुष्टयमयी स्वरूप में (पर अभाव) पर पदार्थों का अभाव है [और (रूवतीत) समस्त रूपों से अतीत (रूव) स्वरूप (विक्तयं) अपने आपमें प्रगट है (सरूव रूव) स्वरूप ही अपना स्वरूप है, वह (विक्त) वर्तमान पर्याय में प्रगटता होता है, तब (तिक्त भय) समस्त भय छूट जाते हैं (निरूपियं) ऐसा जिनेन्द्र परमात्मा ने निरूपित किया है [स्वभाव के आश्रय से] (अन्यान भाव) रागादि अज्ञान भाव रूप (मन सुभाव) मन का स्वभाव (मिच्छ भय निकंदनो) मिथ्यात्व और भय दूर हो जाते हैं (ममल) त्रिकाल शुद्ध (तं न्यान रूव) ज्ञान स्वरूप पर दृष्टि रखने से (समल भाव) समस्त रागादि भाव (विहंडनो) खण्ड-खण्ड हो जाते हैं।
अन्यान भाव अनिस्ट रूप भय विनस्ट दिस्टियं । तं पर पवि नंत थान नंत न्यान दर्सिय ॥ तं विषय इस्ट अनिस्ट दिस्टि ममल न्यान पंडनो।
तं पर पर्जाव समल चित्त न्यान सहाव निकंदनो ॥ ६ ॥ भावार्थ :- (नंत न्यान) अनंत ज्ञानमयी स्वभाव को (दिस्टियं) द्रव्य दृष्टि से (दर्सियं) देखो, इससे (अनिस्ट रूव) अनिष्टकारी (अन्यान भाव) अज्ञान भाव (नंत थान) अनंत भेद रूप (तं पर पर्जाव) पर पर्याय, और (भय विनस्ट) भय नष्ट हो जायेंगे (तं विषय इस्ट) पाँच इन्द्रियों के विषयों को इष्ट मानने वाली (अनिस्ट दिस्टि) अनिष्ट दृष्टि (ममल न्यान पंडनो) ममल ज्ञान स्वभाव के आश्रय से छूट जाती है (तं पर पर्जाव) और पर पर्यायों से (समल चित्त) होने वाली चित्त की मलिनता (न्यान सहाव) ज्ञान स्वभाव में रहने से (निकंदनो) दूर हो जाती है।
अनंत नंत न्यान दिस्टि मोह मय विहण्डनो । निसक रूव ममल भाव कम्म तिविहि गालनो ॥ सरीर भाव मन सुभाव इन्द्रि भय निकंदनो ।
अतीन्द्रि भाव न्यान दिस्टि कम्म मल विहंडनो ॥ ७ ॥ भावार्थ :- (अनंत नंत) अनंत अनंत (न्यान दिस्टि) ज्ञान स्वभाव की दृष्टि से (मोह मय) मोह मद (विहंडनो) चूर-चूर हो जाता है (ममल भाव) ममल स्वभाव के प्रति (निसंक रूव) निःशंक होने से (कम्म तिविहि गालनो) तीनों प्रकार के कर्म गल जाते हैं (सरीर भाव) शरीर से संबंधित भाव (मन सुभाव) मन का स्वभाव है, इससे तथा (इन्द्रि) इन्द्रिय विषयों से होने वाला (भय) भय (निकंदनो) दूर हो जाता है (अतीन्द्रि) इन्द्रियातीत (न्यान भाव) ज्ञान स्वभाव की (दिस्टि) दृष्टि से (कम्म मल) कर्म मल (विहंडनो) खण्ड-खण्ड हो जाते हैं।