Book Title: Gyanodaya
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

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Page 192
________________ देव वंदना १७७ अभ्यास के प्रश्न - सही विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिये - (क) सकल परमात्मा वे हैं जो................कर्मों का घात करके निज में लीन हो जाते हैं। (अघातिया/घातिया) (ख) सिद्ध परमात्मा के.............कर्म क्षय हो जाते हैं। (घातिया चार/घातिया अघातिया आठ) (ग) निकल परमात्मा सदा....................हैं। (ज्ञान घन/विज्ञान घन) (घ) अरिहंत सर्वज्ञ चिन्मय हैं और सिद्ध...................हैं। (मध्य लोक वासी/लोकाग्र वासी) (ङ) लौकिक स्वार्थवश जग जीव..............को मानते हैं। (देवों को/कुदेवों को) प्रश्न २ - अति लघु उत्तरीय एवं लघु उत्तरीय प्रश्न - (क) निज शुद्धात्मा किसके समान है ? उत्तर - मेरा निज शुद्धात्मा स्वभाव से सिद्ध के समान है। (ख) अरस, अरूपी, अस्पर्शी किसके विशेषण हैं? उत्तर - अरस, अरूपी, अस्पर्शी जीव द्रव्य के विशेषण हैं। (ग) घातिया अघातिया कर्मों के क्षय से कौन से गुण प्रगट होते हैं? उत्तर - समकित दर्शन ज्ञान अगुरुलघु अवगाहना। सूक्ष्म वीरजवान निराबाध गुण सिद्ध के || अर्थात् क्षायिक सम्यक्त्व, अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अगुरुलघुत्व, अवगाहनत्व, सूक्ष्मत्व, अनंत वीर्य, अव्याबाधत्व यह आठ गुण हैं, जो घातिया अघातिया कर्मों के क्षय से सिद्ध परमात्मा के प्रगट होते हैं। प्रश्न३ - दीर्घ उत्तरीय प्रश्न - (क) निकल परमात्मा कौन हैं ? उनकी क्या विशेषतायें हैं ? हम निकल परमात्मा कैसे बन सकते हैं? उत्तर हैं सिद्ध सर्व विशुद्ध निर्मल, तत्त्व मय जिनकी दशा । जो हैं सदा विज्ञान घन, अमृत रसायन मय दशा ॥ अर्थात् जिन्हें अपने आत्म स्वरूप की पूर्ण उपलब्धि हो चुकी है वे निकल परमात्मा अथवा सिद्ध हैं। सम्पूर्ण द्रव्य कर्म, भाव कर्म, नो कर्म का पूर्णतया अभाव हो जाने से पूर्ण निर्विकारी, आनन्द मय आत्मीक गुणों की प्राप्ति ही सिद्ध दशा है। घातिया अघातिया कर्मों के अभाव रूप सम्यक्त्व आदि आठ गुणों का प्रगट होना उनकी विशेषता है। गृहस्थपना त्याग कर शुद्धोपयोग रूप मुनिधर्म धारण कर एक अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त

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