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श्री ममलपाहुड़ जी फूलना - ३२ पद को जीतना अर्थात् स्वभाव की अटल श्रद्धा होना (सुइ षिपक भाउ) यही क्षायिक भाव है (सुइ) अपने (परम सनंदे) परम आनंदमयी (परम जिन) परम वीतराग स्वभाव में (रत्तु) लीन रहना ही (तं सिद्धि मुक्ति रमनि) सिद्धि मुक्ति में रमण करना है (सम) समभाव सहित (सनंदे) आनंद स्वरूप (समय) शुद्धात्म (सहाउ मउ) स्वभावमय अर्थात् अनंत चतुष्टय की प्राप्ति होना (तं तरन विवान) यही तरण विमान है (जिन सहज जिनंदे) वीतराग सहजानंदमयी जिनेन्द्र पद की (जिनय) प्राप्ति होने पर (सिह समय) शीघ्र समय में अर्थात् अल्प समय में ही (सिद्धि संपत्तु) सिद्धि की संपत्ति प्राप्त होती है।
चेतक हियरा फूलना का सारांश चेतक हियरा फूलना, आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज द्वारा रचित श्री भयषिपनिक ममल पाहुड़ जी ग्रन्थ की ग्यारहवीं फूलना है। इस फूलना में आत्मार्थी ज्ञानी की अंतरंग भावना, चैतन्य स्वरूप की महिमा आदि का अद्भुत कथन किया गया है। चेतक हियरा फूलना का अर्थ है चैतन्य हीरा का स्वरूप बतलाने वाली फूलना।
चैतन्य हीरा क्या है ? आचार्य कहते हैं कि ओंकार सत्ता स्वरूप, नंद आनंदमयी, स्व संवेदनगम्य, ज्ञायक स्वभाव ही चैतन्य हीरा है। ज्ञानी ध्यानी इसी चैतन्य हीरा की भावना भाते हैं और इसी को प्राप्त करने का पुरुषार्थ करते हैं।
रागादि विभावों का अत्यधिक विस्तार है, इनसे अपने आपको बचाने वाला, स्वभाव का जिसको दृढ़ लक्ष्य है ऐसा आत्मज्ञ पुरुषार्थ चैतन्य हीरा को प्राप्त करता है । चैतन्य हीरा अर्थात् ज्ञायक स्वभाव के आश्रय पूर्वक ज्ञानामृत में रमण करने से रागादि का विष दूर हो जाता है।
चैतन्य स्वभाव को हीरा की उपमा दी गई है। यह चैतन्य अपने चित्प्रकाश से परम दैदीप्यमान, कमल स्वभाव, परमात्म स्वरूप, कर्म विजेता, मुक्ति को प्राप्त कराने वाला है। इस चैतन्य स्वभाव का एक समय का श्रद्धान सम्यग्दर्शन, स्वभाव रूप परिणति होना सम्यग्ज्ञान और स्वभाव में लीन हो जाना सम्यक्चारित्र है। इनको ही क्रमशः उत्पन्न अर्थ, हितकार अर्थ और सहकार अर्थ कहा गया है। तिअर्थ की साधना सहजानंद परमानंद को प्राप्त कराती है।
अनंत चतुष्टयमयी स्व समय अर्थात् शुद्धात्म स्वरूपमय होना तरण विमान है। इसी के सहारे कर्म क्षय होते हैं और जिनेन्द्र पद प्रगट हो जाता है। अनंत चतुष्टय प्रगट होने के बाद अघातिया कर्मों के अभाव होने पर सिद्ध पद की प्राप्ति होती है।
प्रश्नोत्तर प्रश्न १ - चेतक हियरा क्या है? उत्तर - आत्मा स्वसंवेदन गम्य ज्ञानमयी तत्त्व है, जिसमें परसंयोग एवं रागादि भावों का अभाव है।
आत्मा स्वभाव से ज्ञानमात्र है, समस्त ज्ञेयों का ज्ञायक है। यह ज्ञायक स्वभाव ही चेतक
हियरा अर्थात् चैतन्य हीरा है। प्रश्न २ - चैतन्य हीरे का प्रकाश किसके अंतर में प्रकाशित होता है? उत्तर - जो ज्ञानी षट्कमल की ध्यान योग साधना से चैतन्य स्वभाव के अतीन्द्रिय आनंद अमृतरस
का वेदन करता है और उसी में रमण करता है, विषयों का विष जिसके गल गया है, उसके अंतर में चैतन्य हीरे का प्रकाश प्रकाशित होता है अर्थात् ज्ञायक भाव जाग्रत रहता है।