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छहढाला - पहली ढाल
देवगति में भवनत्रिक का दुःख कभी अकामनिर्जरा करै, भवनत्रिक में सुरतन धरै ।
विषय-चाह-दावानल दह्यो, मरत विलाप करत दुःख सहो ॥ १६ ॥ अन्वयार्थ :- [इस जीव ने] (कभी) कभी (अकाम निर्जरा) अकाम निर्जरा (करै) की तो मरने के पश्चात् (भवनत्रिक में) भवनवासी व्यंतर और ज्योतिषी में (सुरतन) देवपर्याय (धरै) धारण की [परन्तु वहाँ भी (विषय चाह) पाँच इन्द्रियों के विषयों की इच्छारूपी (दावानल) भयंकर अग्नि में (दह्यो) जलता रहा [और] (मरत) मरते समय (विलाप करत) रो - रो कर (दुख) दुःख (सह्यो) सहन किया।
देवगति में वैमानिक देवों का दुःख जो विमानवासीह थाय, सम्यग्दर्शन बिन दुख पाय ।
तहत चय थावर तन धरै, यो परिवर्तन पूरे करै ॥ १७ ॥ अन्वयार्थ :- (जो) यदि (विमानवासी) वैमानिक देव (हू) भी (थाय) हुआ [तो वहाँ] (सम्यग्दर्शन) सम्यग्दर्शन (बिन) बिना (दुख) दुःख (पाय) प्राप्त किया [और (तहतै) वहाँ से (चय) मरकर (थावर तन) स्थावर जीव का शरीर (धरै) धारण करता है (यों) इस प्रकार [यह जीव (परिवर्तन) पाँच परावर्तन (पूरे करै) पूर्ण करता रहता है।
प्रश्नोत्तर मंगलाचरण प्रश्न १ - छहढाला में कुल कितने पद हैं, प्रत्येक ढाल के पदों की संख्या बताइये? उत्तर - छहढाला में कुल ९५ पद हैं, पहली ढाल में १७, दूसरी में १५, तीसरी में १७, चौथी में १५,
पाँचवीं में १५ और छटवीं ढाल में १६ पद हैं। प्रश्न २ - छहढाला में किस-किस छंद में पद लिखे गये हैं? उत्तर - छहढाला में चौपाई, पद्धरी, नरेन्द्र, रोला, छंदचाल और हरिगीता छंद में पद लिखे गये हैं। प्रश्न ३ - वीतराग विज्ञानता किसे कहते हैं? उत्तर - वीतराग अर्थात रागद्वेष रहित, विज्ञानता अर्थात केवलज्ञान। रागद्वेष रहित केवलज्ञान स्वरूप
को वीतराग विज्ञानता कहते हैं। प्रश्न ४ - जैन धर्म विज्ञान है या कला? उत्तर - जैनधर्म कलात्मक विज्ञान है और वैज्ञानिक कला है क्योंकि इसका सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान
पक्ष, विज्ञान है और सम्यक्चारित्र पक्ष, कला है। विज्ञान में वस्तु का व्यवस्थित ज्ञान होता है और कला में जो शिक्षा ग्रहण की है उसका जीवन में उपयोग होता है। जैसे - १. पढ़ना विज्ञान है। पढ़ाना कला है।
२. आत्मा को जानना विज्ञान है। जानते रहना, उसमें निमग्न रहना कला है। प्रश्न ५ - तीन भुवन कौन से हैं, नाम लिखें? उत्तर - तीन भुवन - ऊर्ध्व लोक, मध्य लोक, अधो लोक हैं।
प्रश्नोत्तर प्रश्न १ - तीन लोक में कितने जीव हैं? उत्तर - तीन लोक में अनन्त जीव हैं।