Book Title: Gyanodaya
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

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Page 160
________________ श्री ममलपाहुड़ जी परिचय श्री भयषिपनिक ममल पाहुइ जी संक्षिप्त परिचय । आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य महाराज द्वारा रचित चौदह ग्रंथों में यह सबसे विशाल ग्रंथ है। । इस ग्रंथ का नाम श्री भयषिपनिक ममल पाहुड़ है। । भय षिपनिक का अर्थ है-भयों को क्षय करने वाला । आचार्य श्रीमद् जिन तारण स्वामी को 'मिथ्याविली वर्ष ग्यारह 'श्री छद्मस्थवाणी ग्रंथ के इस सूत्रानुसार ग्यारह वर्ष की अवस्था में सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हुई। सम्यग्दर्शन होने पर इह लोक परलोक आदि सात भयों का अभाव हुआ। पुनश्च यह ग्रंथ भयों को क्षय करने वाला है - इसका आशय है कि सम्यक्दृष्टि ज्ञानी के अंतर में चारित्रमोहनीय कर्मोदय के निमित्त से होने वाले चारित्र गुण के विकार रूप भयों का क्षय हो इस उद्देश्य से आचार्य तारण स्वामी ने इस ग्रंथ की रचना की है। । ममल का अर्थ है त्रिकाली शुद्ध ध्रुव स्वभाव, जिसमें अतीत में कर्म मल नहीं थे, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में कर्म मल नहीं होंगे, ऐसे परम शुद्ध स्वभाव को ममल कहते हैं। ग्रंथ में इसी अभिप्राय को व्यक्त करने के लिए ममलह ममल स्वभाव भी कहा गया है। - इस ग्रंथ में ३२०० गाथायें हैं, जो १६४ फूलनाओं में निबद्ध हैं। जिसे पढ़कर या सुनकर जीव आल्हादरूप परिणामों सहित आनंद विभोर हो जाए उसे फूलना कहते हैं। । जिस प्रकार वर्तमान समय में हम भजन पढ़ते हैं, उसी प्रकार ममल पाहुड़ ग्रंथ में लिखी गई फूलना विभिन्न राग-रागनियों में पढ़ी जाने वाली प्राचीन रचनायें हैं। । जैसे भजनों में हर अंतरा के बाद टेक दोहराई जाती है, उसी प्रकार फूलनाओं में अचरी या आचरी होती है, जो हर गाथा के बाद दोहराई जाती है। - इस ग्रंथ की १६४ फूलनाओं में ११५ फूलना-फूलना रूप हैं, १४ फूलना-छंद गाथा रूप हैं और ३५ फूलना-गाथा रूप हैं इस प्रकार १६४ फूलना तीन प्रकार की रचनाओं में विभाजित हैं। श्री भयषिपनिक ममलपाहुड़ ग्रंथ आत्म साधना की अनुभूतियों का अगाध सिंधु है। १६४ फूलनाओं में उपयोग को ममल स्वभाव में लीन करने की साधना के रहस्य निहित हैं। सम्यग्दर्शन ज्ञानपूर्वक, सम्यक्दृष्टि ज्ञानी सम्यक्चारित्र के मार्ग में अग्रसर होता है, स्वभाव में लीन होने का पुरुषार्थ करता है, ज्ञानी साधक की चारित्र परक अंतरंग साधना इस ग्रंथ का मुख्य विषय है। । शुद्धात्म स्वरूप के आश्रय से आत्म साधना आराधना पूर्वक उपलब्ध होने वाली सूक्ष्म आध्यात्मिक अनुभूतियाँ इस ग्रंथ का हाई है। साथ ही आगम में अध्यात्म को खोजना साधक की अनुपम कला है। इस ग्रंथ में आचार्य श्री तारण स्वामी ने आगम सम्मत अनेक विषयों के माध्यम से अध्यात्म की गहराई को छुआ है। जगत में ऐसे ज्ञानी पुरुष विरले ही होते हैं। निश्चय व्यवहार से देव गुरू धर्म की महिमा, केवलज्ञान स्वभाव और सिद्ध स्वरूप की आराधना, ममलह ममल स्वभाव के बहुमान पूर्वक वीतरागी होने का पुरुषार्थ, पंच परमेष्ठी के गुणों की आराधना पूर्वक स्वभाव की साधना, धर्म कर्म का यथार्थ निर्णय, पंच पदवी के माध्यम से आत्मा से परमात्मा होने की साधना का विधान तथा अन्य अनेकों प्रकार से ममल स्वभाव की साधना सहित संपूर्ण द्वादशांग वाणी का सार इस ग्रंथ में बताया गया है।

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