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एक धर्म
ज्ञान विज्ञान भाग -१
श्रुतज्ञ
तीन चेतना
चार ध्यान
जीव के पाँच भाव छह लेश्या
सप्त शील आठ कर्म
नौ लब्धि
दस प्राण
ग्यारह दस पूर्वी आचार्य
द्वादशांग
तेरह महाव्रत
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पाठ - ९ आओ सीखें
धर्म एक है दो श्रुत ज्ञान, तीन चेतना चार हैं ध्यान । पाँच भाव छह लेश्या जान, सप्त शील धारे गुणवान ॥ आठ कर्म नौ लब्धिसार, दस प्राणों में जीव अपार । ग्यारह दस पूर्वी आचार्य, द्वादशांग पहिचानों आर्य ॥ तेरह महाव्रत चौदह ग्रन्थ, पन्द्रह योग जान लो सन्त । सोलह ध्यान नियम हैं सत्रह, आप्त, रहित हैं दोष अठारह | जीव समास कहे उन्नीस पुद्गल के गुण जानो बीस । भाव औदयिक हैं इक्कीस, तज दो सब अभक्ष्य बाईस || करलो अब निज पर का ज्ञान, चौबीस ठाणा जीव स्थान । भव्य ! कषाय तजो पच्चीस भव तरकर बैठो जग शीश ॥
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विस्तार बोध
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आत्मा का स्वभाव ।
भाव श्रुत, द्रव्य श्रुत ।
कर्म चेतना, कर्मफल चेतना, ज्ञान चेतना ।
आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान । औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक भाव | कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म, शुक्ल लेश्या ।
तीन गुण व्रत, चार शिक्षा व्रत ।
ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र, अंतराय ।
केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिक दान, क्षायिक लाभ, क्षायिक भोग, क्षायिक उपभोग, क्षायिक वीर्य क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र ।
पाँच इन्द्रिय (स्पर्शन, रसना, घाण, चक्षु, कर्ण) तीन बल ( मन, वचन, काय), आयु, श्वासोच्छ्वास ।
विशाख, प्रौष्ठिल, क्षत्रिय, जयसेन, नागसेन, सिद्धार्थ, धृतिषेण, विजय, बुद्धिल, गंगदेव, धर्मसेन ।
आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्या प्रज्ञप्ति अंग, ज्ञातृधर्म कथांग, उपासकाध्ययन अंग, अंतःकृत दशांग, अनुत्तरोपपादिक अंग, प्रश्न व्याकरणांग, विपाक सूत्रांग, दृष्टि वादांग।
पाँच महाव्रत - अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह |
पाँच समिति - ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान निक्षेपण समिति, प्रतिष्ठापना समिति ।
तीन गुप्ति- मन गुप्ति, वचन गुप्ति, काय गुप्ति ।