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ज्ञान विज्ञान भाग - २
३७
संसार में कितने और कौन-कौन से रत्न हैं तथा उनका क्या करना चाहिये ?
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संसार में चार रत्न हैं सच्चा देव, सच्चा गुरु, सच्चा धर्म और सच्चा शास्त्र, इनका यथार्थ स्वरूप समझकर इनकी शरण लेना चाहिये ।
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मनुष्य जन्म की सार्थकता किस बात में है ?
कुदेव, कुगुरू, कुधर्म और अदेव, अगुरु, अधर्म के श्रद्धान रूप मिथ्यात्व को छोड़कर सच्चे देव, गुरु, धर्म का श्रद्धान करना अर्थात् सत्-असत् की पहिचान कर सम्यक् मार्ग पर चलने में मनुष्य जन्म की सार्थकता है।
कुदेव और सुदेव दोनों की श्रद्धा करने में क्या हानि है ?
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'मनुष्य तो विवेक बिना, पशु के समान गिना' सच्चे झूठे का विवेक जिसको होता है वही मनुष्य है। सत्-असत् के विवेक बिना मनुष्य पशु के समान होता है इसलिये सच्चे देव गुरु धर्म शास्त्र का श्रद्धान करना चाहिये ।
विनय बैठक में सूत्र की व्याख्या किस प्रकार पढ़ते हैं ?
'जामें संक्षेप में ही बहुत सारभूत कथन होय, जाके सुने से जीव के मन, वचन, काय एक रूप हो जायें, नहीं तो हे भाई! मन कहूं को चले, वचन कछू कहे और काया जाकी स्थिर न होय ताको एक सूत्र न होय है - धन्य हैं श्री गुरु तारण तरण मण्डलाचार्य महाराज जिनके मन, वचन, काय, उत्पन्न, हित, साह, नो, भाव, द्रव्य यह नौ सूत्र सुधरे तथा दसवें आत्म सूत्र की उपलब्धि कर चौदह ग्रन्थों की रचना करी ।
आचार्य तारण स्वामी के नौ सूत्र सुधरे इसका क्या तात्पर्य है ?
नौ सूत्र में तीन योग, तीन अर्थ और तीन कर्म हैं। आचार्य तारण स्वामी के नौ सूत्र सुधरे अर्थात् मन, वचन, काय शुद्ध हुए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान पूर्वक सम्यक्चारित्र को धारण किया । द्रव्य कर्मों में विशेष क्षयोपशम हुआ, भाव कर्म में विशुद्धता प्रगट हुई और नो कर्म रूप शरीर तप साधना से पवित्र हो गया।
विनय बैठक में सिद्धांत की व्याख्या किस प्रकार पढ़ी जाती है ?
जामें पूर्वापर विरोध रहित सिद्धांत रूप चर्चा हो, सप्त तत्त्व, नव पदार्थ, छह द्रव्य, पंचास्तिकाय ऐसे सत्ताईस तत्त्वों का यथार्थ निर्णय किया होय तथा आत्मोपलब्धि की वार्ता चले ताको नाम सिद्धांत ग्रन्थ कहिये ।
नाम की शोभा किससे है ?
नाम की शोभा गुण से है इसलिये मन्दिर विधि में पढ़ते हैं 'यथा नाम तथा गुण, गुण शोभित नाम नाम शोभित गुण, धन्य हैं वे भगवान जिनके नाम भी वन्दनीक हैं और गुण भी वंदनीक हैं जिनके नाम लिये अर्थ अर्थात् रत्नत्रय की प्राप्ति होय है।
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