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श्री मालारोहण जी
प्रस्तावना सोलहवीं शताब्दी के महान अध्यात्मवादी संत आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज सम्यग्ज्ञान के प्रभापुंज से अलोकित, रत्नत्रय विभूषित, वीतरागता की तेजोमय आभा संपन्न संसार सागर से स्वयं पार होने वाले तथा मानव मात्र को भव सागर से पार करने में निमित्त तारण तरण क्रांतिकारी वीतरागी महापुरुष थे। उन्होंने विचार मत, आचार मत, सार मत, ममल मत और केवल मत इन पाँच मतों में चौदह ग्रंथों की रचना कर भारत की आध्यात्मिक संस्कृति को अत्यंत दृढ़ता प्रदान कर जन-जन के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है।
विचार मत का अर्थ है- बुद्धि पूर्वक अपना निर्णय करना । यह जीव अपने स्वरूप को भूलकर मिथ्यादर्शन, ज्ञान, चारित्र के वश होकर अनादिकाल से संसार की चार गति, चौरासी लाख योनियों में भटकते हुए कर्मफलों को भोग रहा है। स्वयं का अज्ञान मोह, राग, द्वेष और मिथ्यात्वादि विपरीत मान्यता संसार के कारणभूत परिणाम हैं।
विचार मत के अनुसार बुद्धि पूर्वक अपना निर्णय करने से संसार के दु:खों से मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त होता है। विचार मत में तीन ग्रन्थ हैं- श्री मालारोहण जी, श्री पंडित पूजा जी, श्री कमल बत्तीसी जी इन तीनों ग्रंथों में क्रमश: सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का प्रतिपादन किया गया है। इन तीनों ग्रंथों में बत्तीस-बत्तीस गाथायें हैं इसलिये इन्हें तीन बत्तीसी के नाम से जाना जाता है और इनमें संसार सागर से पार होने में कारणभूत रत्नत्रय का वर्णन होने से इन्हें तारण त्रिवेणी भी कहा जाता है।
श्री मालारोहण जी ग्रंथ में शुद्धात्म तत्त्व की प्रधानता है। शुद्धात्म तत्त्व शुद्ध ज्ञान मयी अखंड अभेद तत्त्व है। इसके आश्रय और अनुभव से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है। श्रद्धा गुण की निर्मल पर्याय प्रगट होती है। दृष्टि का विषय अखंड, अभेद शुद्धात्मा होता है। दृष्टि भेद को ग्रहण नहीं करती इसलिये अभेद स्वभाव की अनुभूति को सम्यग्दर्शन कहते हैं। आत्मानुभवी जीव के अंतरंग में मोक्ष रूपी वृक्ष का अद्वितीय बीज स्वरूप समस्त दोषों से रहित सम्यग्दर्शन जयवंत होता है।
ऐसे महा महिमामय सम्यग्दर्शन का स्वरूप इस मालारोहण जी ग्रंथ में पूज्य आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज ने प्रगट किया है। इस ग्रंथ की ३२ गाथाओं में धर्म, सम्यग्दर्शन, साधना, ज्ञानी साधक की चर्या, आत्मानुभूति का प्रमाण, धर्म की महिमा आदि अनेक विषयों का अभूतपूर्व विश्लेषण प्राप्त होता है।
एक ओर सम्यक्त्व का लाभ और दूसरी ओर त्रैलोक्य का लाभ होता हो तो त्रैलोक्य के लाभ से सम्यग्दर्शन का लाभ श्रेष्ठ है। अधिक क्या कहें? अतीतकाल में जो श्रेष्ठजन सिद्ध हुए हैं और जो आगे सिद्ध होंगे, वह सम्यक्त्व का ही माहात्म्य है।