Book Title: Gyandhara 05
Author(s): Gunvant Barvalia
Publisher: Saurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
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जैन जीवन-शैली |
डॉ. शेखरचन्द्र जैन, अहमदाबाद
प्रधान संपादक 'तीर्थंकर वाणी' जब हम जैन जीवन-शैली की बात करते हैं तब यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि यह जैन जीवन-शैली क्या है ? वैसे 'जैन' शब्द स्वयं में विशिष्ट सदाचार का, संयम का प्रतीक शब्द है । एक बात
और ध्यान रखें कि जैन कोई जाति या संप्रदाय नहीं है - वह तो एक संस्कार का नाम है । जहाँ भी 'जैन' शब्द का उच्चारण होता है वहाँ संस्कार की छबि उभरती है । जिन्होंने संयम की लगाम से इन्द्रियों की वाचालता को कसा है, जो देह से देहातीत हो गये है वे 'जिन' कहलाये और जो उनके सिद्धांतों का अनुशरण करें वे जैन हैं । इस दृष्टि से 'जैन' शब्द भी संयम का प्रतीक ही है । जैन' शब्द इसीलिए जाति-विशेष का प्रतीक न होकर संयम, संस्कति का प्रतीक है । पंथ का प्रतीक न होकर धर्म का प्रतीक है। यहाँ 'धर्म' शब्द आत्मा के गुण अहिंसा, सत्यादि शुभ-कार्यों का प्रतीक है।
जब 'जैन' शब्द ही संयम का शुभ-कार्यों का प्रतीक है, तो फिर जीवन-शैली भी उसी संयम के रूप में ही होगी । जब हम जैन जीवनशैली की बात करते हैं तो पूरे जीवन को जीने के तरीके की ही बात करते हैं । इसके अन्तर्गत खान-पान, रहन-सहन जीवनयापन का पूरा चित्र अंकित होता है ।
एक बात सदैव ध्यान रखना है कि हमारी जीवन-शैली का मूल या नींव अहिंसा पर रखी है । हमारे व्यवहार-आचार चिंतन-मनन सभी में इस अहिंसा को ही केन्द्रस्थ माना गाया है । अतः जीवनशैली का प्रधान अंग अहिंसा पर ही अवलंबित है। इस परिप्रेक्ष्य में सर्वप्रथम हम जैन-भोजन की बात करेंगे । हम जानते हैं कि भोजन हमारे संपूर्ण शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए सर्वाधिक आवश्यक है । कहा भी है - "जैसा खाये अन्न वैसा उपजे मन ।" जैन-भोजन उत्तम शाकाहारी भोजन माना गया है। इसके अन्तर्गत समस्त प्रकार के तामसी-भोजन का निषेध है । तामसी ज्ञानधारा-५ ख ८१ बरेन साहित्य ज्ञानसा-५