Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाला, स्वतंत्र आदि शब्द क्रमशः अर, कम, दर, दर, दु, नट, ना, पस, सकर तथा स्वके साथ मिलेंगे। एक बात और । समास-पद्धति द्वारा बनाये जा सकनेवाले शब्दोंकी संख्या अगण्य है, अतः थोड़ेसे अधिक प्रचलित शब्द ही कोशोंमें दिये जा सकते हैं। विशिष्ट कवियों अथवा लेखकों द्वारा प्रयुक्त कितने ही अनोखे और अटपटे सामासिक शब्दोंका छोड़ दिया जाना स्वाभाविक एवं अनिवार्य-सा है । उदाहरणके लिए एक सु-कविने रणभूमिके लिए 'समर-वसुमती, रणमेदिनी' जैसे शब्दोंका तथा मेघनादके लिए 'घनध्वनि, घननाद, जलदनाद, पयोद-निनाद' आदिका प्रयोग किया है । ऐसे स्थलोंपर अंगीभूत विभिन्न शब्दोंके आधारपर ही पाठकोंको सम्पूर्ण समस्त पदका अर्थ निकालनेकी चेष्टा करनी चाहिये । शब्दोंके मूल रूप हिन्दीमें संस्कृत शब्दों (संज्ञाओं) का प्रायः कर्ता कारकके एक वचनका रूप ही प्रयुक्त होता है किन्तु समस्त पदोंका ठीक-ठीक रूप समझनेके लिए मूल रूपकी जानकारी होना भी आवश्यक है, अतः 'बृहत हिन्दी कोश'की तरह इस कोशमें भी हमने संस्कृत शब्दोंके सामने कोष्ठकमें मूल रूप भी दे दिया है । समास बनाते समय पूर्व पदका अन्तिम 'न' लुप्त हो जाता है, इसीसे 'स्वामी' तथा 'मन्त्री' से स्वामिभक्ति, स्वामिसेवा, मंत्रिमंडल, मंत्रिपरिषद् आदि शब्द बनते हैं। कितने ही शब्दोंका कर्ता कारकका रूप अलग दिया है और समास बनानेके पूर्वका रूप, उचित क्रममें, उससे पृथक रखकर उसीके साथ समस्त पद दिये गये हैं। उदाहरणके लिए 'राजा (जन् )' तथा 'पिता (तृ)' शब्द यथास्थान देकर उनके अर्थ भी वहीं रख्ने गये हैं किन्तु उनसे बननेव ले सामासिक शब्द 'राज (न्)' तथा 'पित' के साथ दिखाये गये हैं, जिससे उन्हें पहचानने, समझनेमें कठिनाई न हो। अरबी-फारसी शब्दोंके मूल रूप जहाँ आवश्यकता प्रतीति हुई, वहाँ ही दिये गये हैं, अन्यथा वे प्रायः उच्चारणके अनुसार रखे गये हैं, जैसे उमदा, हमेशा । व्रजभाषा, अवधी आदिके शब्दोंके विभिन्न रूप कवियोंने प्रयुक्त किये हैं, अतः हमें भी कोशमें उन्हें स्थान देना पड़ा है, यद्यपि अर्थ केवल मुख्य शब्द या अधिक प्रचलित रूपके साथ ही दिये गये हैं। उदाहरणके लिए घी, घिअ, घिउ, घिय, घिव, धरहरा, धराहर, धौरहा, धौलह , धौलाहर, धवरहर, धवराहर, आदि शब्द देखे जा सकते हैं। व्याकरण-सम्बन्धी कठिनाई हिन्दीमें कितने ही शब्द ऐसे हैं जो देखनेमें तो विशेषण जैसे प्रतीत होते हैं किंतु बहुधा संज्ञाकी तरह भी प्रयुक्त होते हैं। ऐसे शब्द प्रायः कर्तृवाचक हुआ करते हैं, जैसे खेवैया, गवैया, जनैया, कर्ता, विधाता, प्रहारक, विचारक, मारक, अनुयायी, विरोधी, आदि अथवा पतंगबाज, गलेबाज, नशेबाज या मुफ्तखोर, जूताखोर, चुगुलखोर आदि । इनमेंसे जिनका प्रयोग बहुलांशमें संज्ञावत् होता है, उन्हें हमने संज्ञा तथा जिनका प्रयोग बहुधा विशेषणवत होता है उन्हें विशेषण माना है और कितने ही शब्दोंके साथ वि०, पु० दोनों ही दिया है। वस्तुतः स्थलविशेषमें प्रयोगके अनुसार ही इनका शब्दभेद समझना चाहिये। दूसरी कठिनाई शब्दोंके लिंग-निर्धारणकी है। कुछ लेखक और विद्वान् एक शब्दको पुंलिंग मानते हैं, तो दूसरे उसका प्रयोग स्त्रीलिंगमें करते हैं। रहन-सहन, झंझट, वय, बर्फ, मैल, मिठास, चरागाह', नमाजगाह आदि ऐसे ही शब्द हैं । इस तरहके कितने ही शब्दोंको हमें For Private and Personal Use Only

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