Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम संस्करणकी भूमिका यह कोश वस्तुतः 'बृहत् हिन्दी कोश'का ही समधिक संक्षिप्त रूप है, जैसा कि उसके साथ इसके दो-चार पृष्ठोंका मिलान करनेपर स्पष्ट हो जायगा। 'बृहत्' कोशका मूल्य सामान्य स्थितिके पाठकोंक लिए कुछ अधिक होनेके कारण उनमेंसे कितने ही उससे लाभ उठा सकनेके सु-अवसरसे वंचित रह जाते थे, अतः उनकी माँग पूरी करनेकी दृष्टिसे ही इसका निर्माण किया गया है । इसमें आज-कलकी या पुरानी हिन्दीमें प्रचलित प्रायः सभी शब्दोंका समावेश करनेकी चेष्टा की गयी है । केवल वे हो शब्द-अरबी, फारसी, संस्कृत आदिके-निकाले गये हैं जिनका प्रयोग हिन्दीके किसी कवि या लेखकने शायद ही कभी, भूले-भटके एकाध बार किया हो अथवा भविष्यमें भी जिनके प्रयुक्त होनेकी कम ही संभावना हो। शब्दोंका चयन करते समय हमने हिन्दी साहित्यके सामान्य पाठकोंकी आवश्यकताका बराबर ध्यान रखा है और इसे उनके लिए अधिकसे अधिक उपयोगी बनानेका भरपूर प्रयत्न किया है । इसीसे इसमें हमें लगभग ६६ हजार शब्दों या रूपोंका समावेश करना पड़ा है, जितने संभवतः हिन्दीके इसी आकार-प्रकारके अन्य किसी कोशमें सन्निविष्ट नहीं हो सके है।। समास-पद्धतिका प्रयोग संस्कृत, अंग्रेजी तथा अन्यान्य भाषाओंकी तरह हिन्दीमें भी समस्त पदोंका प्रयोग प्रचुर रूपसे होता है। ऐसे पद प्रायः मूल शब्दके साथ ही कोशमें रखे गये हैं, जिससे स्पष्ट हो जाय कि वे स्वतंत्र शब्द न होकर दो या अधिक शब्दोंके योगसे बने हैं। ऐसे समस्त या संयुक्त शब्दोंको एक साथ रखनेमें उनका प्रायिक सम्बन्ध दिखलानेके अतिरिक्त एक उद्देश्य और था-स्थानकी बचत करना । हाँ, जिन समस्त पदोंके रूपमें सन्धि-सम्बन्धी नियमोंके कारण कुछ विकार हो जाता है, वे प्रायः मूल शब्दसे पृथक रखे गये हैं, जिससे उन्हें पहचानने में सन्धिके नियमोंसे अपरिचित सामान्य पाठकोंको कठिनाई न हो । सुहावरे भी मूल शब्दके साथ ही, समस्त पदोंका सिलसिला समाप्त होनेके बाद, दिये गये हैं । इन सब स्थलोंपर मूल शब्दके स्थानपर डैश (-) का प्रयोग किया गया है और जहाँ मुहावरोंमें मूल शब्दके रूपमें किञ्चित् परिवर्तन हो जाता है, वहाँ डैशके बजाय या तो पूरा शब्द दे दिया गया है या कोकके भीतर परिवर्तनका संकेत कर दिया गया है। व्युत्पन्न शब्द संस्कृतके समस्त पदोंके साथ ही व्युत्पन्न शब्दोंके भी दे देनेसे स्थानकी बचत तो होती किन्तु एक ही स्थानपर बहुतसे शब्दोंका जमघट हो जानेके कारण उन्हें ढूँढ़नेमें अधिक कठिनाईकी संभावना थी । इस विचारसे प्रत्ययोंकी सहायतासे बनाये गये संस्कृतके शब्द मूल शब्दसे पृथक , क्रमके अनुसार, यथा-स्थान रखे गये हैं। अन्य भाषाओंके शब्दोंके साथ भी केवल वे ही प्रत्ययान्त शब्द रखे गये हैं जिनके मूल रूपमें प्रत्यय लगनेके कारण कोई विकार नहीं होता। यदि कोई शब्द अपने स्थानपर अर्थात् क्रममें न मिले तो पाठकोंको एक बार यह देख लेना चाहिये कि वह समस्त पद तो नहीं है। ऐसा करनेसे उन्हें सम्भवतः निराश न होना पड़ेगा। उदाहरणके लिए अरघट्ट, कमजोर, दरकार, दरबार, दुविधा, नटसाल, नाहक, पसोपेश, सकर For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 1016