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गुरु-शिष्य
जिनसे सीखे, वे भी गुरु प्रश्नकर्ता : तो धर्म के संदर्भ में गुरु एक ही बनाएँ या सब जगह गुरु बनाएँ?
दादाश्री : ऐसा है, कि शिष्यभाव सभी जगह रखना चाहिए। वास्तव में पूरे जगत् को गुरु बनाना चाहिए। पेड़ के पास से भी सीखने को मिलता है। इस आम के पेड़ का हम क्या करते हैं? आम खाने के लिए उसे झकझोरते हैं, फिर भी वह फल देता है, मार खाकर भी फल देता है! इतना उसका गुण यदि अपने में आ जाए तो कितना अच्छा काम हो जाए! वह भी जीव ही है न! वह कोई थोड़े ही लकड़ी है?
प्रश्नकर्ता : दत्तात्रेय ने कुछ प्राणियों को अपना गुरु बनाया था, वह किस अर्थ में?
दादाश्री : वह तो सिर्फ दत्तात्रेय ने ही नहीं, सभी लोग बनाते हैं। एकएक मनुष्य प्राणियों को गुरु बनाता है। लेकिन ये लोग उसे गुरु नहीं कहते
और दत्तात्रेय ने प्राणियों को गुरु कहा! प्राणी को कोई मारे न, तब वह भाग जाता है। ऐसा लोग भी सीखे हैं कि हमें कोई मारे तो भाग जाना चाहिए। ऐसे भाग जाना लोग प्राणियों से सीखे हैं।
___और सिर्फ उन प्राणियों को ही गुरु कहकर निकाल नहीं होता, पूरे जगत् के जीव मात्र को गुरु बनाएँ तो ही छुटकारा है। पूरे जगत् के तमाम जीवों को गुरु बनाएँ, जिसके पास से जो कुछ जानने को मिले वह स्वीकार करें, तो मुक्ति है। जीव मात्र में भगवान बिराजे हुए हैं, इसलिए वहाँ सभी से हम कुछ संपादन करें तो मुक्ति है।
आपको गुरु के बारे में समझ में आया न? प्रश्नकर्ता : ठीक है।
दादाश्री : आपके अनुभव भी आपके गुरु हैं। जितना अनुभव हुआ वह आपको उपदेश देगा। और यदि अनुभव उपदेश का कारण नहीं बनता हो तो