________________
१३२
गुरु-शिष्य
के गुज़ारे के लिए क्या ज़रूरत है? बाक़ी दूसरा कुछ उन्हें नहीं होना चाहिए। या फिर 'बड़ा होना है, फलाँ होना है', ऐसा नहीं होना चाहिए।
उसीका नाम जुदाई ये क्या सुखी लोग हैं? मूलतः दुःखी हैं लोग और उनके पास से रुपये लेते हो? दुःख निकालने के लिए वे गुरु के पास जाते हैं न? तब आप उसके पच्चीस रुपये लेकर उसका दुःख बढ़ा देते हो! एक पैसा भी नहीं लेना चाहिए किसीके पास से। एक रुपया भी नहीं लेना चाहिए। दूसरों के पास से कुछ भी लेना, वह जुदाई कहलाती है। उसीका नाम संसार है! उसमें वही भटका हुआ है, जो लेनेवाला मनुष्य है वह भटका हुआ कहलाता है। सामनेवाले को पराया समझता है, इसलिए वह पैसे लेता है।
__ इस दुनिया की कोई भी चीज़, एक रुपया भी यदि मैं खर्च करूँ तो मैं उतना दिवालिया हो जाऊँ। भक्तों का एक भी पैसा खर्च नहीं कर सकते। यह व्यापार जिसने शुरू किया है वह खुद दिवालिया की स्थिति में चला जाएगा, यानी जो कुछ भी उन्हें सिद्धि प्राप्त है, वह खोकर चले जाएँगे। जो थोड़ीबहुत सिद्धि प्राप्त हुई, उसके आधार पर सब लोग उनके पास आते थे। परंतु फिर सिद्धि खत्म हो जाएगी! किसी भी सिद्धि का दुरुपयोग करो तो सिद्धि खत्म हो जाती है।
सर्व दुःखों से मुक्ति माँगनी, या... कितने ही लोग यहाँ आकर पैसे रखते हैं। अरे, यहाँ पैसे नहीं रखने होते, यहाँ माँगना होता है। यहाँ तो रखने का होता होगा? जहाँ ब्रह्मांड का मालिक बैठा हुआ है, वहाँ तो कुछ रखा जाता होगा? आपको तो सिर्फ माँगना होता है कि 'मुझे ऐसी अड़चन है, वह निकाल दीजिए।' वर्ना, पैसे तो किसी गुरु के सामने रखना। उन्हें कुछ कपड़े चाहिए होंगे, दूसरा कुछ चाहिए होगा। ज्ञानीपुरुष को तो कुछ भी नहीं चाहिए।
एक मिल के सेठ ने, सांताक्रुज़ में हम जहाँ रहते थे वहाँ, इतनी बड़ीबड़ी तीन पेटियाँ मज़दूर के साथ ऊपर भिजवाईं। फिर सेठ ऊपर मिलने आया।