Book Title: Guru Shishya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 153
________________ १४२ गुरु-शिष्य आपमें मैं ही बैठा हुआ हूँ, उनमें भी मैं बैठा हुआ हूँ, फिर मुझे जुदाई कहाँ रही फिर? और यहाँ तो गुरु पूर्णिमा होती ही नहीं, वास्तव में! यह तो गुरु पूर्णिमा मनाते हैं उतना ही है, एक दर्शन करने के निमित्त से ! बाक़ी, यहाँ गुरु पूर्णिमा नहीं होती। यहाँ 'गुरु' ही नहीं हैं और 'पूर्णिमा' भी नहीं है ! यह तो लघुत्तम पद है! यहाँ तो आपका ही स्वरुप है यह सब, यह अभेद स्वरूप है ! हम लोग जुदा हैं ही नहीं न ! गुरु बने तो आप और मैं, शिष्य और गुरु दो भेद पड़े। परंतु यहाँ गुरु-शिष्य कहलाता ही नहीं न! यहाँ गुरु भी नहीं और शिष्य भी नहीं। यहाँ पर गुरु-शिष्य का रिवाज ही नहीं। क्योंकि यह तो अक्रम विज्ञान है !!! - जय सच्चिदानंद

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