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गुरु-शिष्य
मीठी बातों के शौक जाने दो अब, इस एक जन्म के लिए! अब तो आधा ही जीवन रहा है न! अब पूरा जीवन कहाँ रहा है?
प्योरिटी ही चाहिए प्रश्नकर्ता : आप ऐसा बोले, दूसरा कोई ऐसा कहता भी नहीं।
दादाश्री : हाँ, परंतु प्योर हो गया हो तब बोले न! नहीं तो वह किस तरह बोलेगा? उन्हें तो इस दुनिया का लालच चाहिए और इस दुनिया के सुख चाहिए। वे क्या बोलेंगे फिर? इसलिए प्योरिटी होनी चाहिए। पूरे वर्ल्ड की चीजें हमें दो, तो हमें उनकी ज़रूरत नहीं है, पूरे वर्ल्ड का सोना हमें दे, तो भी हमें उसकी ज़रूरत नहीं है। पूरे वर्ल्ड के रुपये दे, तो हमें ज़रूरत नहीं है, स्त्री विचार ही नहीं आता। इसलिए इस जगत् में किसी भी प्रकार की हमें भीख नहीं है। शुद्ध आत्मदशा साधनी, वह कोई आसान बात है?
प्रश्नकर्ता : मतलब कि किसी भी गुरु का व्यक्तिगत चारित्र शुद्ध होना चाहिए!
दादाश्री : हाँ, गुरु का चारित्र संपूर्ण शुद्ध होना चाहिए। शिष्य का चारित्र न भी हो, लेकिन गुरु का चारित्र तो एक्ज़ेक्ट होना चाहिए। गुरु यदि बिना चारित्र के हैं तो वे गुरु ही नहीं, उसका अर्थ ही नहीं। संपूर्ण चारित्र चाहिए। यह अगरबत्ती चारित्रवाली होती है, इतने से कमरे में यदि पाँच-दस अगरबत्तियाँ जलाई हों तो पूरा कमरा सुगंधीवाला हो जाता है। तब फिर गुरु तो बिना चारित्रवाले चलेंगे? गुरु तो सुगंधीवाले होने चाहिए।
मुख्य ज़रूरत, मोक्षमार्ग में मोक्षमार्ग में दो चीजें नहीं होती। स्त्री के विचार और लक्ष्मी के विचार! जहाँ स्त्री का विचार मात्र हो, वहाँ धर्म नहीं होता, लक्ष्मी का विचार मात्र हो वहाँ धर्म नहीं होता। इन दो मायाओं के कारण तो यह संसार खड़ा रहा है। हाँ, इसलिए वहाँ धर्म ढूँढना भूल है। जब कि अभी लक्ष्मी के बिना कितने केन्द्र चलते हैं?