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गुरु-शिष्य
पब्लिक ऐसी लालची है कि कहेगी, 'चरण रखें तो अपना काम हो जाए। बेटे के घर बेटा हो जाए, आज पंद्रह वर्ष से नहीं है तो।'
प्रश्नकर्ता : श्रद्धा है लोगों की इसलिए।
दादाश्री : नहीं, लालची हैं इसलिए। श्रद्धा नहीं है, इसे श्रद्धा नहीं कहते। लालची मनुष्य तो चाहे जो मनौती मानेगा। पागल के लिए भी मनौती रखते हैं। कोई कहे कि 'यह पागल है, जो लोगों को बच्चे देता है। तो ये लोग 'बापजी, बापजी' करके उसके भी पैरों पड़ेंगे। उसके बाद बच्चा हो जाएँ तो कहेंगे, ‘इनके कारण ही हुआ न?' लालची लोगों से तो क्या कहें?
यह तो मुझे भी लोग कहते हैं कि, 'दादा ने ही यह सब दिया है।' तब मैं कहता हूँ कि, 'दादा तो कुछ देते होंगे?' परंतु सब दादा के सिर पर आरोपित करते हैं! आपका पुण्य और मेरा यशनाम कर्म होता है, इसलिए हाथ लगाऊँ और आपका काम हो जाता है। तब ये सब कहते हैं, 'दादाजी, आप ही करते हैं यह सब।' मैं कहता हूँ कि, 'नहीं, मैं नहीं करता। आपका ही आपको मिला है। मैं किसलिए करूँ? मैं कहाँ यह झंझट मोल लूँ? मैं कहाँ इन झगड़ों में पहूँ?' क्योंकि मुझे कुछ नहीं चाहिए। जिसे कुछ भी नहीं चाहिए, जिसे कोई वांछना नहीं है, किसी चीज़ के भिखारी नहीं हैं, तो वहाँ आपका काम निकाल लो।
मैं तो क्या कहता हूँ कि हमारे चरण रखवाओ, पर लक्ष्मी की वांछनापूर्वक मत करो। ठीक है, वैसा कोई निमित्त हो तो हमारे चरण रखवाओ।
प्रश्नकर्ता : घर के उद्धार के बदले खुद का उद्धार हो, वैसा तो कर सकता है या नहीं?
दादाश्री : हाँ, सबकुछ कर सकता है। सबकुछ ही हो सकता है। लेकिन लक्ष्मी की वांछना नहीं होनी चाहिए। यह दानत खोरी नहीं होनी चाहिए और यह आप मुझे फोर्स करके उठाकर ले जाओ, उसका अर्थ पधरावनी किया कहलाएगा? पधरावनी मतलब तो मेरी राजीखुशी से होना चाहिए। फिर भले