Book Title: Guru Shishya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 142
________________ गुरु-शिष्य १३१ प्रश्नकर्ता : एक भी नहीं। दादाश्री : वह माया छूटती नहीं न! गुरु में भी माया प्रवेश कर गई होती है। कलियुग है न! इसलिए प्रवेश कर जाती है न, काफी कुछ? इसलिए जहाँ पर स्त्री संबंधी विचार हैं, जहाँ पैसे संबंधी लेन-देन है, वहाँ सच्चा धर्म नहीं हो सकता। संसारियों के लिए नहीं, परंतु जो उपदेशक होते हैं, जिनके उपदेश के आधार पर चलते हैं, वहाँ यह नहीं होना चाहिए। नहीं तो इन संसारियों के वहाँ भी यही है और आपके वहाँ भी यही है? ऐसा नहीं होना चाहिए। तीसरा क्या? सम्यक् दृष्टि होनी चाहिए। इसलिए लक्ष्मी और स्त्री संबंध हों, वहाँ पर खड़े मत रहना। गुरु देखकर बनाना। लीकेजवाला हो तो मत बनाना। बिल्कुल भी लीकेज नहीं चाहिए। गाड़ी में घूमता हो तो हर्ज नहीं, परंतु चारित्र में फेल हो तो हर्ज है। बाक़ी यह अहंकार हो उसका हर्ज नहीं है, कि 'बापजी, बापजी' करें तो खुश हो जाता है, उसमें हर्ज नहीं है। चारित्र से फेल नहीं हो तो लेट गो करना चाहिए। सबसे मुख्य वस्तु चारित्र है! प्रश्नकर्ता : लक्ष्मी और स्त्री वह सच्ची धार्मिकता के विरुद्ध है! परंतु स्त्रियाँ तो अधिक धार्मिक होती हैं, ऐसा कहा जाता है। दादाश्री : स्त्रियों में धार्मिकता होती है, उसमें शंका नहीं है, धर्म में स्त्रियाँ हों तो हर्ज नहीं है, परंतु कुदृष्टि का हर्ज है, कुविचार का हर्ज है। स्त्री को भोग का स्थान मानते हो, उसमें हर्ज है, वह आत्मा है, वह भोग का स्थान नहीं है। बाक़ी, जहाँ लक्ष्मी ली जाती है, फ़ीस के रूप में लक्ष्मी ली जाती है. टैक्स के रूप में लक्ष्मी ली जाती है, भेंट के रूप में ली जाती है, वहाँ धर्म नहीं होता। पैसे हों, वहाँ धर्म नहीं होता और धर्म हो वहाँ पैसा नहीं होता। यानी कि समझ में आए वैसी बात है न? जहाँ विषय और पैसे हों, वहाँ वह गुरु भी नहीं है। गुरु भी अब अच्छे तैयार होंगे। अब सब कुछ बदलेगा। अच्छा यानी शुद्ध। हाँ, गुरु को पैसों की अड़चन हो, तो हम पूछे कि आपको खुद

Loading...

Page Navigation
1 ... 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158