________________
गुरु-शिष्य
१३३
मैंने कहा, 'क्या है यह सब सेठ?' तब सेठ कहते हैं, 'कुछ नहीं, फूल नहीं पर फूल की पंखुड़ी...' मैंने कहा, 'किसलिए यह पंखुड़ी लाए हो?' तब उन्होंने कहा, 'कुछ नहीं, कुछ नहीं साहब।' मैंने कहा, 'आपको कुछ दुःख या अड़चन है?' तब वे बोले, 'सेर मिट्टी चाहिए।' 'अरे, सेर मिट्टी कौन-से जन्म में नहीं थी? कुत्ते में गया वहाँ भी बच्चे थे, गधे में गया वहाँ भी बच्चे थे, बंदर में गया वहाँ भी बच्चे, जहाँ गया वहाँ बच्चे। अरे, कौन-से जन्म में नहीं थी यह मिट्टी? अभी भी सेर मिट्टी चाहिए? भगवान आप पर राजी हुए हैं, तब फिर
आप मिट्टी ढूँढ रहे हो? फिर मुझे रिश्वत देने आए हो? यह आपकी गंदगी मुझे चुपड़ने आए हो? मैं व्यापारी आदमी ! फिर मेरे पास गंदगी आए तो मैं किसे चुपड़ने जाऊँ? ये बाहर सभी गुरुओं को चुपड़ आओ। उन बेचारों के पास गंदगी नहीं आती। यह झगड़ा यहाँ कहाँ लाए?' तब उन्होंने कहा, 'साहब, कृपा कीजिए।' तब मैंने कहा, 'हाँ, कृपा करेंगे, सिफारिश कर दूंगा।'
आपको जो दुःख है, तब हमें तो 'इस तरफ का' 'फोन' पकड़ा और 'इस तरफ'(देवी-देवताओं को) 'फोन' किया! हमें बीच में कुछ भी नहीं है। मात्र एक्सचेन्ज करना है। नहीं तो हमें ज्ञानीपुरुष को यह सब होता ही नहीं न! ज्ञानीपुरुष इसमें कुछ हाथ नहीं डालते। लेकिन इन सबके दुःख सुनने पड़े हैं न! ये सारे दुःख मिटाने पड़े होंगे न? अड़चन हो तो रुपये माँगने आना। अब, मैं तो रुपये देता नहीं, मैं फोन कर दूंगा, आगे! परंतु लोभ मत करना। तुझे परेशानी हो, तभी आना। तेरी परेशानी दूर करने को सभी कर दूंगा। परंतु लोभ करने जाएगा, उस घड़ी में बंद कर दूंगा।
आपके दुःख मुझे सौंप दो और यदि आपको विश्वास हो तो वे आपके पास नहीं आएँगे। मुझे सौंपने के बाद आपका विश्वास टूटेगा तो आपके पास वापिस आएँगे। इसलिए आपको कुछ दुःख हों, तो मुझे कहना कि, 'दादा, मुझे इतने दुःख हैं, वे मैं आपको सौंप देता हूँ।' वे मैं ले लूँ तो निबेड़ा आए, नहीं तो निबेड़ा कैसे आएगा? ___मैं इस दुनिया के दुःख लेने आया हूँ। आपके सुख आपके पास ही रहने दो। उसमें आपको हर्ज है क्या? आपके जैसे यहाँ पर पैसे दें, तो मुझे