Book Title: Guru Shishya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 62
________________ गुरु-शिष्य उतना अपने शिष्यों से करने को कहते हैं कि 'इतना करो, इतना आप त्याग करो।' इसलिए वहाँ तप-त्याग सभी कसौटियों में से गुज़रना पड़ता है। परंतु गुरु की कृपा से उसे भीतर दूसरी उपाधि नहीं लगती और उनके गुरु की कृपा से चलता रहता है। पर इस पर बात का अंत नहीं आता है, अत: इसी तरह गाड़ी चलती रहती है। सभी गुरु साफ करते हैं। एक गुरु यदि बनाए हों, तो वे गुरु आपका सारा मैल निकाल देते हैं और उनका खुद का ही मैल हो, वह आपमें रख देते हैं। फिर दूसरे गुरु मिलें, वे फिर आपका जो मैल है, वह निकाल देते हैं और फिर उनका मैल डालते जाते हैं। यह है गुरु परंपरा ! ५१ जैसे कि कपड़ा है, तो उसे धोने के लिए साबुन डालते हैं, वह साबुन क्या करता है? कपड़े का मैल निकाल देता है, परंतु साबुन खुद का मैल डाल देता है। तो साबुन का मैल कौन निकालेगा? फिर लोग क्या कहते हैं? 'अरे, साबुन डाला, पर टीनोपोल नहीं डाला?' 'परंतु टीनोपोल किसलिए डालूँ? साबुन से मैल निकाल दिया न !' अब अपने वहाँ यह टीनोपोल पाउडर होता है न, उसे अपने लोग क्या समझते होंगे? वे ऐसा समझते होंगे कि यह कपड़े सफेद करने की दवाई होगी ! वह तो उस साबुन का मैल निकालता है, पर अब टीनोपोल खुद का मैल छोड़ गया । उसके लिए दूसरी दवाई ढूँढ निकाल तो टीनोपोल का मैल जाएगा । इस दुनिया में हर एक अपना-अपना मैल छोड़ता जाता है। ऐसा कब तक चलता रहता है? जब तक शुद्ध स्फटिक दवाई नहीं हो, तब तक । गुरु नहीं बनाए और यहाँ पर आ गए इसलिए यह फायदा हो गया। यदि गुरु बनाए होते, तो फिर वे उनका मैल चढ़ाते । कौन है जो मैल नहीं देता? ज्ञानीपुरुष! वे खुद मैलवाले नहीं होते, शुद्ध स्वरूप होते हैं और सामनेवाले को शुद्ध ही बनाते हैं। दूसरा झंझट नहीं । ज्ञानी नया मैल नहीं चढ़ाते । इसलिए ज्ञानीपुरुष के पास संपूर्ण शुद्धि का मार्ग है । इसलिए अंत में ज्ञानीपुरुष मिलें, तब सारा मैल साफ हो जाता है ! कमी चारित्रबल की शिष्यों में क्रमिक मार्ग में गुरू सिर पर होते हैं और शिष्य उनके साथ में दो या

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