Book Title: Guru Shishya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 107
________________ गुरु-शिष्य मन में समझते हैं कि 'ये सेठ किसी दिन काम आएँगे।' कोई चश्मे मँगवाने हों, कुछ चाहिए होगा तो काम के हैं। अब वे सेठ वैसे तो कालाबाज़ार करते होंगे, वे बापजी जानते हैं। परंतु वे मन में समझते हैं कि 'हमें क्या? कालाबाज़ार करे, तो वह भुगतेगा। परंतु हम चश्मे मँगवाएँ न!' और सेठ क्या समझते हैं कि, 'कोई हर्ज नहीं। देखो न, बापजी मान देते हैं न, अभी तक! हम कुछ बिगड़ नहीं गए हैं।' वह बिगड़ गया कब मानता है? कि बापजी कहेंगे, 'एय, आप ऐसे धंधे करते हों, तो यहाँ मत आना।' तब ऐसा मन में होता है कि व्यवसाय बदलना पड़ेगा। क्योंकि बापजी आने नहीं देते। 'आइए, आइए' कहकर बैठाई हुई श्रद्धा टिकती होगी? ऐसी श्रद्धा कितने दिन रहेगी? छहबारह महीनों तक रहेगी और फिर उतर जाएगी। ऐसी श्रद्धा के बिना मोक्ष नहीं है यानी श्रद्धा तो, मैं गालियाँ दूं तो भी रहे, वह सच्ची श्रद्धा है। मान के कारण थोड़ी देर श्रद्धा टिकी हो, परंतु वह उखड़ जाती है फिर। अपमान करे वहाँ पर भी श्रद्धा बैठती है, तब वह टिकी हुई श्रद्धा उखड़ती नहीं। आपको समझ में आया न? एकबार श्रद्धा बैठने के बाद हमें गालियाँ दें, मारें, तो भी अपनी श्रद्धा टूटे नहीं, वह अविचल श्रद्धा कहलाती है। ऐसा होता है क्या? वैसी श्रद्धा बैठे बगैर मोक्ष नहीं है। यह आपको गारन्टी से कहता हूँ। बाक़ी, हमें अनुकूल नहीं आया और घर चले गए, वह श्रद्धा ही नहीं कहलाती। यानी आपकी अनुकूलता ढूँढ रहे हो या मोक्ष ढूँढ रहे हो? अनुकूल नहीं आया और चले गए वह श्रद्धा कहलाएगी? आपको कैसा लगता है? श्रद्धा मतलब तो, सौंप दिया सबकुछ! 'यहाँ' पर श्रद्धा आती ही है और मैं ऐसा नहीं कहता कि, 'मुझ पर आप श्रद्धा रखो।' क्योंकि मैं श्रद्धा रखवानेवाला मनुष्य ही नहीं हूँ। ये पचास हज़ार लोग आते होंगे तो हमारी बात के लिए श्रद्धा रखने को मना करते हैं। सभी को कह देते हैं कि हमारा एक अक्षर भी मत मानना। हम पर श्रद्धा रखना ही नहीं। आपका आत्मा कबूल

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