Book Title: Guru Shishya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 128
________________ गुरु-शिष्य ११७ मंदिरों में भी नाम डालने लगे हैं वापिस कि 'इन गुरु ने बनवाया।' अरे, नाम तो रहते होंगे कभी? संसारियों के नहीं रहते, तो साधुओं के नाम तो रहते होंगे? नाम रखने की तो इच्छा ही नहीं होनी चाहिए। कोई भी इच्छा रखना भीख है। ध्येय चूका और घुसी भीख यह भीख जाती नहीं। मान की भीख, कीर्ति की भीख, विषय की भीख, लक्ष्मी की भीख... भीख, भीख और भीख! बिना भीखवाले देखे हैं क्या? आखिर में मंदिर बनवाने की भी भीख होती है, इसलिए मंदिर बनाने में पड़ते हैं। क्योंकि कोई काम नहीं मिले, तब कीर्ति के लिए यह सब करते हैं। अरे, किसलिए मंदिर बनवाते हो? हिन्दुस्तान में क्या मंदिर नहीं हैं? परंतु ये तो मंदिर बनवाने के लिए पैसा इकट्ठा करते रहते हैं। भगवान ने कहा था कि मंदिर बनानेवाले तो, उनके कर्म के उदय होंगे तो बनवाएँगे। तू किसलिए इसमें पड़ता हिन्दुस्तान का मनुष्यधर्म सिर्फ मंदिर बनवाने के लिए नहीं है। सिर्फ मोक्ष में जाने के लिए ही हिन्दुस्तान में जन्म है। एक अवतारी हुआ जाए, उस तरफ का ध्येय रखकर काम करना, तो पचास अवतार में भी, सौ अवतार में या पाँच सौ अवतार में भी हल आ जाएगा। दूसरा ध्येय छोड़ दो। फिर शादी करना, बच्चों का बाप बनना, डॉक्टर बनना, बंगले बनवाना, उसमें हर्ज नहीं है। परंतु ध्येय एक जगह पर ही रख, कि हिन्दुस्तान में जन्म हुआ है तो मुक्ति के लिए साधन कर लेनी है। इस एक ध्येय पर आ जाओ तो हल आ जाएगा! बाक़ी, किसी प्रकार की भीख नहीं होनी चाहिए। इस तरह धर्म के लिए दान लिखवाओ, फलाना लिखवाओ, वैसी अनुमोदना में हाथ नहीं डालना चाहिए। करना, करवाना और अनुमोदन करना वहाँ पर नहीं होना चाहिए। हम तो सर्व भीखों से मुक्त हो चुके हैं। मंदिर बनवाने की भी भीख नहीं है। क्योंकि हमें इस जगत् की कोई भी चीज़ नहीं चाहिए। हम मान के भिखारी नहीं हैं, कीर्ति के भिखारी नहीं हैं, लक्ष्मी के भिखारी नहीं हैं, सोने के भिखारी नहीं हैं. शिष्यों के भिखारी नहीं हैं। विषयों के विचार नहीं आते, लक्ष्मी का विचार

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