Book Title: Guru Shishya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 95
________________ LX गुरु-शिष्य उल्टा भी नहीं सोचना गुरु का गुरु तो शिष्य को ज़रा-सा कहे कि 'तुझमें अक्कल नहीं है, तो शिष्य चला जाता है। अपमान लगता है, इसलिए चला जाता है। वहाँ तो वह विरोधी हो जाता है कि 'आपका दिमाग़ तो चलता नहीं, और मेरे गुरु बन बैठे हैं', ऐसा कहता है, इसलिए बल्कि बुरा होता है ! __ कल पैर छता हो और आज पत्थर मारता है? जिनके पैर छुए हैं, उन्हें कभी नहीं मारना। यदि मारना हो तो फिर से कभी पैर मत छूना! गुरु कहेंगे, आपको ग्यारह बजे यहाँ से कहीं भी नहीं जाना है। फिर अंदर मन कूदने लगे तो भी नहीं जाना। ऐसे कोई हैं सही, गुरु चाहे जैसे बर्ताव करें परंतु वे अधीन रहते हैं। परंतु अभी के गुरु का अधीनपन रहता है, उसमें वे गुरु भी इतने अधिक कच्चे और कमज़ोर है कि शिष्य फिर परेशान होकर कहेगा कि 'ये बिना बरकत के गुरु मिले हैं!' ऐसा एक ही बार बोले न, तो सबकुछ किया-कराया खत्म हो जाता है! गुरु का किया हुआ सब, निन्यानवे वर्ष तक अच्छा किया हो, वह गुरु सिर्फ छह महीने उल्टा करे तो शिष्य सबकुछ खत्म कर देता है! इसलिए गुरु के पास यदि कभी अधीन नहीं रहा हो तो क्षणभर में सारा खत्म कर दे! क्योंकि यह विस्फोटक (बारुदखाना) है। ये दूसरी सभी चीजें बारुदखाना नहीं है। यह सिर्फ गुरु के पास ही बारुदखाना है। सबकुछ किया हो, परंतु वह बारुदखाना भारी है इसलिए बहुत जागृत रहना, सावधान रहना और यदि चिंगारी गिरी तो निन्यानवे वर्ष का किया-कराया धूलधूसरित हो जाएगा! और जल मरेगा, वह अलग! वहाँ उपाय करना रहा एक व्यक्ति मुझे कहता है कि, 'एक बड़े संत पुरुष हैं, उनके यहाँ जाता हूँ, उनके दर्शन करता हूँ। फिर भी अब मुझे मन में उनके लिए खराब विचार आते हैं।' मैंने कहा, 'क्या विचार आते हैं?' तब वे कहते हैं, 'यह नालायक है, दुराचारी है, ऐसे सब विचार आते हैं।' मैंने कहा, 'तुझे ऐसे विचार करने

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