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परिचय खंड , ,
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" नरनारी जे नसिक ते, मुणियहु सब चिनुलाइ ।
ढूंठ न कब हि घुमाइयहिं, विना सरस तर नाइ। मरस कथा जइ होई ती, मुणड सविहि मन लाइ ।
जिहां मुबान होवहि कुसुम, मरम मधुप निहां जाइ ॥" कवि की यह रचना प्रासादगुण युक्त है। इसमें उच्च कोटि की कवि प्रतिभा के दर्गत होते हैं।
भोज प्रबंध १
लगभग २००० लोकों से पूर्ण तीन अध्यायों में विभक्त कृति है। कथा का आधार प्रवंच चिन्तार्माण नथा वल्लाल का भोज प्रबन्ध है, फिर भी रचना प्रौढ एवं स्वतंत्र है । भापा कहीं मामान्य और कहीं अपभ्रंन से प्रभावित है--
" बनतें वन छिपतउ फिन्ड, गव्हर वन निकुंज ।
मुखड भोजन मांगिवा, गोवलि मायउ मुंज ।। २४७ ।। गोकुलि काई ग्वारिनी, ऊंची बइठी ग्याटि।
सात पुत्र नातइ बहू, दही विलोबहिं माटि ।। ४८ ॥" . इन पंक्तियों में नजा मुंज के युद्ध में पराजित होकर एक गांव में आने का वर्णन है।
श्री मो० द० देसाई ने इसकी एक अपूर्ण प्रति का भी उल्लेख किया है। २ " विक्रम पंचदण्ड कथा " ( १७१५ गाथाओं की वृहद रचना ) ३, “ देवदत्त चोरई" ( ५६० पद्यों की रचना ) ४, “ वीरांगदा चउपइ" ( ७५ पदों की रचना ) ५, " स्थूलमन फाग" ( १०० पद्यों की कृति ) ६ तया "राजुल नेमिनाथ धमाल" (६४ पद्यों का लघु काव्य ) ७ अनुभूति की दृष्टि से कवि प्रतिमा के परिचायक व भाषा की दृष्टि से अपभ्रंश व गुजराती मे प्रभावित हैं।
१ हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, नाथूराम प्रेमी, पृ० ४५ • जैन गूर्जर कविओ, माग ३, खंड १, पृ० ८०६ ३ वही, पृ० ८१२,
४ वही, पृ०८१३ ५ वही, पृ० ८१४ . ६ (अ) वही, पृ० ८१५ (आ) डॉ० नोगीलाल सांडेसरा, संपा०-प्रगीन फाग संपा० प्राचीन फागु संग्रह, पृ०३१ - ७ जैन गूर्जर कविओ, भाग ६, विण्ड १, पृ० ८१६ .