Book Title: Gurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Author(s): Hariprasad G Shastri
Publisher: Jawahar Pustakalaya Mathura

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Page 329
________________ जैन गुर्जर कवियों को हिन्दी कविता "नी द्वारे का पींजरा, तामें पंछी पोन । रहने को आचरज है, गए अचम्भो कौन ॥" कवीर २ " जो हम ऐसे जानते, प्रीति वीचि दुख होइ । सही ढंढेरो फेरते, प्रीत करो मत कोइ ॥ ८ ॥ " जि० ग्र ं० पृ० ४१६ " जे मैं एसो जानती, प्रीत कियां दुख होय । नगर ढंढरी फेरती, प्रीत न ३ ' उठि कहा सोई रह्यउ, नइन काल आइ कमउ द्वार; तोरण ज्यु वींद रे ।। " जि० ग्रं० ३५१ "सोवू र सोवू वन्दा के करै, सोया आवै रे नींद, सिरहाण वन्दायूं खड़ी, तोरण आयो ज्यू ं बींद ।" - संत सुधाकर - काजी महमद करियो कोय ||" मीराबाई भरी नींद रे । ३२७ जायसी और जैन कवियों ने भी ब्रह्म की आराधना में "प्रेम के प्याले" खूब पिये है | महात्मा आनंदघन ने प्रेम के प्याले को पीकर मतवाले चेतन द्वारा परमात्म सुगन्ध लेने की बात कही है और फिर वह ऐसा खेल खेलता है कि सारा संसार तमाशा देखता है । १ जायसी के प्रेम-प्याले में तो इतना नया है कि श ही नहीं रहता । वह अपने प्रेम पात्र को देखने में भी समर्थ नही । रत्नसेन प्रेम की इस वेहोशी में पहचानना तो दूर पद्मावती को देख भी न सके । २ प्रेम का तीर भी एक जैसा है, वह जिसे लगता है, वह वहीं का वहीं रह जाता है-"तीर अचूक हे प्रेम का लागे सो रहे ठौर ।" आनंदघन ३ ते सोइ ||" जायसी ४ 11 कबीर ५ " प्रेम घाव दुख जान न कोई । जेहि लागे जाने " लागी चोट सबद की, रह्या कवीरा ठौर ॥ इस प्रकार की समानता सूचक अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं। सूरदास ने जिस प्रकार "अब में नाच्यो बहुत गुपाल" कहकर सांगरूपक में जिस विनय भावना को अभिव्यक्ति की है, इसकी स्मृति जिनराजसूरि की इन पंक्तियों से अनायास हो उठती है | देखिए कितना अद्भुत साम्य है १. आनंदघन पद संग्रह, श्री भव्यात्म ज्ञान प्रसारक मंडल, बम्बई, पद २८वां । २. " जाहि मद चढ़ा परातेहि पाले, सुधि न रही ओहि एक प्याले ॥" ८४ | रामचन्द्र शुक्ल, जायसी ग्रंथावली, १२वीं चौपाई, पृ० ३. आनंदघन पद संग्रह, पद ४, पृ० ७ ४. जायसी ग्रंथावली, प्रेम खण्ड; पहली चोपाई, प्र० ४६

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