Book Title: Gurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Author(s): Hariprasad G Shastri
Publisher: Jawahar Pustakalaya Mathura

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Page 332
________________ आलोचना-खंड की पुनीत गंगा में नदी नालों का मिश्रण अवश्य हुआ है, फिर भी उसकी पावनी शक्ति इतनी प्रवल है कि सब को गांगेय रूप मिल गया है ।१ अतः विभिन्न संस्कृतियों का सम्मिश्रण होने पर भी भारतीय संस्कृति अपने मौलिक एवं अपरिवर्तित रूप में यहां की कला-कृतियों, आचार-विचारों आदि में सुरक्षित है। जैन-गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता में भारतीय संस्कृति की उदारता, ममरसता एवं एकता के दर्शन होते हैं । सम्प्रदाय विशेष में दीक्षित होते हुए इन कवियों में असाम्प्रदायिक अभिव्यक्ति का स्वर सदैव ऊंचा रहा है। अन्तर के आवेगों की वेगवती यह धारा धर्म-सम्प्रदाय आदि वाह्य मर्यादाओं की अवहेना कर अपने प्रकृत सांस्कृतिक रूप का परिचय देती हुई वह निकली है । यही कारण है कि इस कविता में सत्यार्थी वीतरागी आत्मा की उत्कट वेदना एवं गहन अनुभूतियां मुखर हो उठी हैं। इन कवियों ने नीति और वैराग्य के नाना उपदेश दिये हैं तथा विभिन्न दृष्टांतों द्वारा संसार की असारता, शरीर की क्षणभंगुरता, आयु की अल्पता, मृत्यु की अटलता, तन, धन, यौवन, विषयासक्ति आदि की निस्सारता बताकर, विनय, आत्मदैन्य, भक्ति, परोपकार, धर्म और दान आदि सद्गुणों की महत्ता सिद्ध करने का महत् प्रयत्न किया है। इनकी वाणी में वाह्य आडम्बरों से वचने, काम, क्रोव, लोम आदि दुर्गुणों को त्यागने, परधन और परस्त्री पर दृष्टि न डालने, जातिपांति और ऊंच-नीच में विश्वास न रखने, भोग-विलास से दूर रहने, स्वार्थ के म्थान पर परमार्थ का विचार करने तथा आत्मा में ही परमात्मा को देखने आदि के सरल उपदेशों की शांतरस-सिक्त धारा निसृत हुई है । भारतीय संस्कृति अनेक धर्मों, सम्प्रदायों तथा उनकी विचार धाराओं एवं साधना पद्धति से पुष्ट होती रही है । अतः इस देश में परमात्मा के अनेक रूप एवं नाम कल्पित किये है पर आखिर तो उसके नाम ही पृथक-पृथक हैं, वस्तुतः वह तत्व एक ही है । इस भाव को जैन-गूर्जर कवियों ने भी सर्वत्र प्रतिपादित किया है। भारतीय संस्कृति की महत्ता अप्रछन्न है । परन्तु उसके सिद्धान्त एवं उद्देश्य गुढ एवं गहन है । उन्हें समझने के लिए कोरे सिद्धान्त वाक्यों से काम नहीं चलता। अतः कवि उन सिद्धान्तों एवं उद्देश्यों को किसी काव्य-कथा द्वारा या कान्तासम्मित उपदेग द्वारा प्रस्तुत कर प्रभावशाली बना देते हैं। इस तरह गूढ़ एवं गहन सिद्धान्त भी मुगमता से हृदयगम करा लिये जाते है। इन कवियों ने अपनी शांतरस प्रधान रचनाओं द्वारा साहित्य के उच्चतम नध्य को स्थिर रखा है । कबीर, सूर, तुलसी, मीरा, नानक आदि कवियों की तरह १. गुलाबराय, भारतीय संस्कृति की स्परेखा, पृ० १५ ।

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