Book Title: Gurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Author(s): Hariprasad G Shastri
Publisher: Jawahar Pustakalaya Mathura

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Page 328
________________ ३२६ जीवित भी कैसे रहे ? बिना प्रिय के अव वह उपाय भी क्या करे ? उसे न तो दिन को भूख लगती है और न रात को ही सुख है । आत्मा जल विहीन मछली की तरह तड़प रही है ।१ सौभाग्य से कबीर की सावना फलती है। मिलन का अवसर आ गया । कवीर ने नैनों की कोठरी में पुतली की पलंग बिछाकर पलकों की चिक डालकर अपने प्रिय को रिझा लिया है ।२ अव तो वह अपने प्रिय को कभी दूर नहीं जाने देगा, क्योंकि बड़े वियोग के बाद, बड़े भाग्य से उसे घर बैठे प्राप्त किया है । कवीर अब तो उसे प्रेम-प्रीति में ही उलझाये रखेंगे और उनके चरणों में लगे रहेंगे । ३ आलोचना-खंड जैन कवि आनन्दघन भी आत्मा और परमात्मा के संबंध का लगभग ऐसा ही वर्णन करते हैं । उनकी आत्मा कभी परमात्मा से मान करने लगता है ( पद १८ ), कभी प्रतीक्षा करती है ( पद १६ ), कभी मिलन की उत्कंठा से तड़प उठती है ( पद ३३), कभी अपनी विरह-व्याकुलता का निवेदन करने लगती है ( पद ४१-५७), कभी प्रिय को मीठे उपालंभ देती है ( पद ३२ ) तो कभी प्रिय मिलन की अनुभूति से आनन्द-मग्न हो अपने "सुहाग " पर गर्व करने लगती है । ( पद २० ) । उनकी विरहिणी दिनरात मीरां की तरह अपने प्रिय का पंथ निहारा करती है । उसे डर है कि कहीं उसका प्रिय उसे भूल न बैठा हो । क्योंकि प्रिय के लिए उसके जैसे लाखों पर उसके लिए उसका प्रिय ही सर्वस्व है " निशदिन जोउ तारी वाटडी, घेरे आवो रे ढोला ॥ मुझ सरिखा तुझ लाख है, मेरे तु ही अमोला ||१|| ४ इस प्रकार इन जैन गूर्जर कवियों और संत या भक्त कवियों में भाव साम्य ही नहीं शब्दावली भी त्यों की त्यों दृष्टिगोचर होती है । जिनहर्ष की कविता में और अन्याय कवियों में भाव या शब्दावली के अद्भुत साम्य के कुछ उदाहरण दृष्टव्य हैं १ " दस दुवार को पींजरो, तामै पंछी रहण अचूवो है जसा, जाण अचूवो ग्रंथावली, पृ० ४१६ पोन | कौन ॥ ४ ॥ " जिनहर्ष १. हजारी प्रसाद द्विवेदी, कबीर, पृ० ३३४ । २. वही, पृ० ३३० ॥ ३. वही, पृ० ३२२ । ४. आनन्दघन पद संग्रह, श्री अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मंडल, बम्बई, पद १६, पृ० ३७

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