Book Title: Gurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Author(s): Hariprasad G Shastri
Publisher: Jawahar Pustakalaya Mathura

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Page 327
________________ जन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता ३२५ अध्यात्म दर्शन है। काव्य और दर्शन के क्षेत्र में यह धारा अप्रतिहत गति से अनवरत प्रवाहित रही। प्रत्येक युग में विभिन्न संतों द्वारा उपनिपद् के आत्म तत्व का विवेचन तथा विश्लेपण होता रहा है । सिद्धनाथ और संत साहित्य पर इसका व्यापक प्रभाव स्पष्ट है । उपनिपदों में वर्णित, ब्रह्मतत्व की व्यापकता तथा अनिर्वचनीयता, चित्त शुद्धि पर जोर, वाह्याचारों का विरोध तथा सहज साधना ही इसकी आधार शिलाएं हैं। यद्यपि जैन धर्म और साधना का विकाश स्वतत्र रूप से हुआ है तथापि वह उपनिषदों के प्रभाव से बचा नहीं। जैन साहित्य में रहस्यवाद के स्वरूप का मूल आचार्य कुन्दकुन्द के "भावपाहुड" में दृष्टि गोचर होता है। बाद में योगीन्दु के "परमात्म प्रकाश" में तथा मुनि रामसिंह के "दोहापाहुड" में रहस्यवाद की इस अविच्छिन्न धारा का वही स्वर मुखरित हुआ है जो आगे चल कर कबीर में देखने को मिलता है । जैन धर्म और साहित्य ज्ञानमूलक है, पर जैन-गूर्जर हिन्दी कवियों का मन ज्ञान की अपेक्षा भाव पर अधिक रमा है । इनका ज्ञान, कोरा ज्ञान नही, प्रेम मूलक ज्ञान है । १७वी एवं १८वीं शती इन गैन गूर्जर कवियों की इस हिन्दी कविता में भावात्मक रहस्यवाद का उत्कृष्ट रूप मिलता है । हां, यह कहना कठिन अवश्य है कि इसकी मूल प्रेरणा जैन परम्परा रही हैं या कवीर जैसे सतों की वाणी । अनुमानतः इस सव के समन्वय ने ही इन कवियों के मानस-तन्तुओं का निर्माण किया होगा। कबीर ने अपने को राम की बहुरिया मानकर जिस दाम्पत्य भाव की साधना की, इसका प्रभाव आनन्दघन जैसे संतों पर न पड़ा हो, यह कैसे कहा जा सकता है । क्योकि कवीर और अनन्दघन जैसे जैन-गूर्जर कवियों में प्रियतम के विरह मे अभिव्यक्त तड़पन, वेकली, मिलन की लालसा और प्रिय के घर आने पर उल्लसित आनन्द की एक-मी धड़कन देखने को मिलती है। प्रियतम के विरह में कबीर की आत्मा तड़पती है। उसे न दिन में चैन है और न रात को नींद ही आती है । सेज सूनी है, तड़पते तड़पते ही रात बीत जाती है। आँखे थक गई, प्रतीक्षा का मार्ग भी नहीं दिखता । वेदर्दी सांई तब भी सुध नहीं लेता ।१ प्रिय का मार्ग देखते देखते आंग्वों में झाई पड़ गई, नाम पुकारते पुकारते जिह्वा में छाले पड़ गये, निष्ठूर फिर भी नहीं पसीजता ।२ पत्र भी कैसे लिखा जाय ? मन में और नयनों में जो समाया हुआ है उसे संदेश भी कैसे दिया जाय ?३ ऐसी विपम स्थिति में कबीर की विरहिणी १. हजारी प्रसाद द्विवेदी, कबीर, पृ० ३२६ । २. वही, पृ० ३३१ । ३. वही, पृ० ३३० ।

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